<p style="text-align: justify;"><strong>Supreme Court News: </strong>केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार (15 दिसंबर) को देश में न्याय मिलने में देरी पर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को सलाह देते हुए कहा था, "सुप्रीम कोर्ट जमानत केस पर नहीं बल्कि संवैधानिक मामले सुने." केंद्रीय कानून मंत्री की इस टिप्पणी के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इस पर सख्त टिप्पणी की.</p>
<p>सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "सुप्रीम के लिए कोई भी केस छोटा नहीं है." चीफ जस्टिस ने ये टिप्पणी बिजली चोरी के मामले में लंबी सजा काट चुके एक व्यक्ति की रिहाई का आदेश देते हुए की. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "हमारे लिए कोई केस छोटा नहीं. अगर हम नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकते तो फिर हम क्या करने के लिए बैठे हैं?"</p>
<p><strong>मौलिक अधिकारों का संरक्षक है सुप्रीम कोर्ट- CJI </strong></p>
<p style="text-align: justify;">चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी अहम है, क्योंकि कल ही कल ही केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर टिप्पणी की थी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को जमानत और छोटे मामलों की जगह बड़े संवैधानिक मामलों को सुनने की सलाह दी थी. इस पर अब चीफ जस्टिस ने अपना रुख भी साफ कर दिया है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट लोगों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक अहम मौलिक अधिकार है."</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बिजली चोरी के मामले को बड़ा बना दिया</strong></p>
<p style="text-align: justify;">बिजली चोरी के मामले में 7 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हापुड़ के रहने वाले इकराम के मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने इस बात पर हैरानी जताई. जब याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि उसका मुवक्किल 7 साल जेल में रह चुका है तो दोनों जस्टिस चौंक गए. पीठ ने कहा, "निचली अदालत और हाई कोर्ट ने एक छोटे अपराध को हत्या के जैसा मामला बना दिया."</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बिजली चोरी में युवक ने 18 साल जेल में बिताए</strong></p>
<p style="text-align: justify;">याचिकाकर्ता पर बिजली चोरी के 9 मुकदमे थे, उसने निचली अदालत में प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया (कम सज़ा के लिए खुद अपना गुनाह मान लेना) का सहारा लिया. उसे सभी 9 मामलों में 2-2 साल की सजा मिली. निचली अदालत ने उन्हें एक ही साथ चलाने का आदेश नहीं दिया. हाई कोर्ट ने भी कह दिया कि सज़ा एक के बाद एक चलेगी, यानी इस तरह उसे 18 साल जेल में बिताने पड़ते.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>’साधारण मामला भी होता है बहुत अहम'</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जब याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि वह 7 साल जेल में रह चुका है तो दोनों जस्टिस हैरान रह गए. जस्टिस ने कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील नागामुथु से उनकी राय पूछी. वरिष्ठ वकील ने कहा, "इस तरह तो यह उम्रकैद का मामला हो गया है." इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के लिए ऐसे मामले सुनना जरूरी है. जज आधी रात तक जग कर केस की फाइल पढ़ते है, क्योंकि कई बार साधारण सा लगने वाला मामला नागरिक अधिकार के लिहाज से बहुत अहम होता है. अगर हम उस तरह के केस में दखल न दें तो हमारी क्या उपयोगिता है?"</p>
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