Mulayam Singh Yadav An Era Of Samajwadi Party Died Two Time He

भारत की राजनीति में अहम कद रखने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने सोमवार 10 अक्टूबर को दुनिया को अलविदा कह दिया. वह ऐसे सूबे में अपनी धमक रखते थे, जिससे देश की सरकार तय होती थी. देश के प्रधानमंत्री तय होते थे. उनके जाने के बाद भी राजनीति में उनके किस्से उन्हें हमेशा ही जिंदा रखे रहेंगे. ऐसे ही किस्सों में शुमार है, उनके देश के प्रधानमंत्री (Prime Minister) पद तक पहुंचते-पहुंचते रह जाने का किस्सा. अखाड़े के पहलवान मुलायम एक नहीं बल्कि दो बार भारत के प्रधानमंत्री बनने से रह गए थे. हालांकि वो राजनीति के अखाड़े के भी खासे अच्छे पहलवान रहे, लेकिन दो बार पीएम पद पर पहुंचने की दौड़ में पीछे रह जाने की ये कसक शायद उन्हें जिंदगी भर सालती रही.  उनका ये मलाल कई बार उनके बयानों में भी सामने आया. एक बार उन्होंने कहा भी था कि 4 लोग मेरे प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में आए. 

जब बेटे के इश्क की भेंट चढ़ा पीएम का पद

देश में 90 का दशक राजनीति में उहापोह वाला था. साल 1996 में ताकतवर होकर उभर रही थी. हालांकि तब उसका पक्ष इतना मजबूत नहीं था जितना की आज है. कांग्रेस भी देश की राजनीति के फलक पर पूरी तरह से छाई हुई नहीं थी. इस साल बीजेपी (BJP) 161 सीट जीतकर सरकार बनाने की स्थिति में थी, क्योंकि कांग्रेस (Congerss) को केवल 141 सीट मिलीं थीं. बीजेपी ने सरकार बनाई भी और अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने. बीजेपी की ये सरकार 16 दिन में ही गिर गई क्योंकि उसे सदन में बहुमत नहीं मिला.  इसके बाद मुलायम सिंह यादव के पीएम बनने के मौका आया, क्योंकि  इसके बाद संयुक्त मोर्चा की मिली-जुली सरकार का रास्ता साफ हुआ तो मुलायम के पीएम होने पर मुहर लगी.

सब तय हो गया, लेकिन  लेकिन लालू यादव और शरद यादव (Sharad Yadav) की वजह से वो पीएम बनते- बनते रह गए. मुलायम लालू यादव से खासे नाराज भी हुए, लेकिन जो होना था वो तो हो चुका था. कहा जाता है कि लालू  मुलायम के पीएम बनने के रास्त में इसलिए आड़े आए. लालू ने मुलायम के खिलाफ अपने खेमे में शरद यादव को भी जोड़ लिया. इसके बाद पीएम पद की शपथ तक पहुंच चुके मुलायम के नाम की जगह संयुक्त मोर्चा की सरकार में  एचडी देवगौड़ा के नाम फाइनल हुआ और मुलायम को रक्षा मंत्रालय पर ही अपना दिल थामना पड़ा. 

लालू यादव ने फिर बिगाड़ा काम

साल 1997 में मुलायम का ये दर्द और बढ़ गया जब वह दोबारा भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. उनकी राह में आड़े आने वाला नाम फिर से वहीं जाना-पहचाना बिहार का लाल यानी लालू यादव. संयुक्त मोर्चे की सरकार में मुलायम की जगह देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने वाले एचडी देवगौड़ा (H Di Doddegowda) की सरकार ने एक साल से पहले ही केवल  324 दिन में दम तोड़ दिया. तब देवेगौड़ा सरकार से कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया था और सरकार गिर गई थी. उस दौरान यानी साल 1997 में लालू प्रसाद यादव चारे घोटाले की चपेट में थे. उन पर सीबीआई (CBI) का शिकंजा कसा हुआ था. सीबीआई के पहले दौर की पूछताछ के बाद उन्होंने देवगौड़ा सरकार से मदद की उम्मीद लगाई थी. कहा जाता है कि उन्होंने फोन पर पीएम देवगौड़ा को फटकार तक लगा डाली थी.

पीएम देवगौड़ा ने लालू यादव की मदद करने से हाथ खड़े कर दिए. सीबीआई के कसते शिकंजे की वजह से लालू तिलमिला उठे थे फिर क्या था अपने 22 सांसदों के बल पर उन्होंने पीएम देवगौड़ा को इस पद से हटा के ही दम लिया. कहा जाता है कि देवगौड़ा सरकार ही सीबीआई के सीबीआई निदेशक जोगिंदर सिंह को लेकर आई थी.

लालू की नाराजगी इसी को लेकर थी और सार्वजनिक तौर पर उन्होंने इसका इजहार भी किया था. जब उन्होंने पीएम देवगौड़ा को कहा कि क्या आपको इसलिए प्रधानमंत्री बनाया था, आपको पीएम बनाकर हमने गलती कर दी. तब देवगौड़ा ने भी उन्हें करारा जवाब दिया था कि देश की सरकार और सीबीआई जनता दल थोड़े है जिसे भैंस की तरह हांका जा सकें. 

देवगौड़ा की पीएम की कुर्सी जाने के बाद फिर इस पद के लिए तलाश शुरू हुई तो लालू खुद इस पर काबिज होने को आतुर दिखे, लेकिन चारा घोटाला उनकी इस चाह में बाधा बन गया. लालू के साथ इस पद के लिए एक नाम और उभरा वो था माकपा के ज्योति बसु का, लेकिन उनकी ही पार्टी ने उनका नाम खारिज कर डाला. चंद्र बाबू नायडू भी इस पद पर काबिज होने के लिए तैयार नहीं हुए.

इसके बाद साफ सुथरे नाम के तौर पर पीएम पद के लिए मुलायम सिंह यादव का नाम फिर से उभरा. उनका नाम वामपंथी नेता हरिकिशन सुरजीत ने आगे रखा था. कम्यूनिस्ट पार्टी मुलायम को समर्थन देने के लिए तैयार थीं, लेकिन लालू ने फिर बात बिगाड़ डाली. उनका कहना था कि वो खुद पीएम बनेंगे.

लालू ने अपने समर्थन में यहां तक कह डाला कि मुलायम सिंह पर भी तो भ्रष्टाचार के आरोप हैं. उन्होंने यूपी के मुलायम यादव को समर्थन देने से खुले तौर पर इनकार किया. लालू ने चंद्र बाबू नायडू और कम्यूनिस्ट पार्टी के सामने इंद्र कुमार गुजराल का नाम आगे कर दिया. इस तरह इंद्र कुमार गुजराल पीएम बने और फिर एक बार मुलायम सिंह यादव पीएम पद तक पहुंचते-पहुंचते रह गए. 

द सोशलिस्ट किताब में बड़ा दावा
मुलायम सिंह यादव की जीवनी ‘द सोशलिस्ट’ लिखने वाले पत्रकार फ्रैंक हूजूर ने इस किताब  में लिखा,” देवेगौड़ा पीएम बने. मैं भी बन सकता था. लालू यादव ने सारी बात बिगाड़ी. वीपी सिंह ने  लालू और शरद यादव को शह दी और उन्होंने मेरे खिलाफ साजिश की. जब मेरे नाम पर आम सहमति बनी तो लालू पलट गए और कहा कि अगर मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री बने तो जहर खा लूंगा.” 

हालांकि लालू इन आरोपों को नकार दिया था. फ्रैंक हुजूर ने इस किताब दावा किया है कि सुरजीत सिंह ने संयुक्त मोर्चे में मुलायम के पीएम पद के नाम पर आम सहमति कायम कर ली थी. इसकी सूचना राष्ट्रपति भवन भी  पहुंचा दी गई थी. लेकिन इस बीच हरिकिशन सिंह रूस चले गए. पूर्व सपा नेता और मुलायम सिंह यादव के कभी बेहद करीबी रहे दिवगंत अमर सिंह ने भी कहा था कि अगर चंद्रबाबू नायडू, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने विरोध न किया होता तो मुलायम सिंह यादव पीएम पद की शपथ ले चुके होते. 

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By jaghit

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