<p style="text-align: justify;">चीन ने रविवार को साल 2023-34 के लिए अपना रक्षा बजट 1550 अरब युआन यानी करीब 224 अरब डॉलर का पेश किया. चीन से पहले अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन और भारत अपना रक्षा बजट बढ़ा चुके हैं. भारत ने 2023-24 के लिए 72.6 अरब डॉलर का बजट पेश किया, यानी भारत के मुकाबले चीन का रक्षा बजट करीब तीन गुणा ज्यादा है. लेकिन, अगर आप गौर करें तो चीन का रक्षा बजट हमेशा से ही भारत के मुकाबले तीन गुणा या उससे भी ज्यादा रहा है. </p>
<p style="text-align: justify;">रक्षा बजट पर खर्च अपने संभावित खतरे और खर्च करने की क्षमता पर निर्भर करता है. चीन, अमेरिका को अपना नंबर-1 प्रतिद्वंद्वी मानता है, दुश्मन नहीं. चीन को अपने लोगों पर भरोसा है और उसकी मुख्य चिंता दक्षिण चीन सागर है. उसकी नीति विकास के साथ विस्तारवादी भी है.</p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;"><strong>चीन की नीति से पड़ोसियों को डर</strong></span></p>
<p style="text-align: justify;">चीन वास्तव में एक बड़ी अर्थव्यवस्था है. उसकी चिंताओं में दक्षिण चीन सागर के अलावा तवांग भी है. चीन जिन पड़ोसी देशों से घिरा है, जैसे- दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलिपीन्स, जापान, इंडोनेशिया, ये सभी चीन की साउथ चाइना शी पॉलिसी के चलते डरे हुए हैं. ऐसे में निश्चित तौर पर वे खर्च करने में सक्षम हैं और लगातार रक्षा खर्च पर इजाफा कर रहे हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">यूक्रेन-रूस जंग के बीच चीन का अपना अलग रुख है और इस पूरे विवाद में रूस के प्रति उसका झुकाव है. ऐसी स्थिति में वो हथियारों का उत्पादन और उसका निर्यात भी कर सकता है. तीसरे विश्वयुद्ध के खतरे की जहां तक बात है, तो अतीत से काफी कुछ सीखा गया है. वो चाहे अमेरिका का वियतनाम हमला हो, अफगानिस्तान में रूस का कब्जा और उसके बाद अमेरिका का उस पर प्रभुत्व और उसके बाद रूस-यूक्रेन वॉर.</p>
<p style="text-align: justify;">रूस-यूक्रेन के बीच ये विवाद इसलिए चल रहा है क्योंकि यूक्रेन परमाणु संपन्न देश नहीं है. जहां तक चीन की बात है तो उसके बड़े महत्वाकांक्षी विस्तारवादी इरादे हैं. लेकिन इसमें हिन्दुस्तान के लिए बहुत चिंता की बात नहीं है. </p>
<p style="text-align: justify;"><span style="color: #e03e2d;"><strong>क्वाड पर चीन की नजर</strong></span></p>
<p style="text-align: justify;">इसके अलावा, क्वाड ऑस्ट्रेलिया, यूएस, जापान और भारत का एक समूह है. ये देश सिर्फ राजनीतिक सहयोगी ही नहीं बल्कि कहीं उससे ज्यादा हैं. ऐसी स्थिति में उन्होंने अपना रक्षा बजट बढ़ा लिया है. </p>
<p style="text-align: justify;">इस बहाने चीन रक्षा बजट बढ़ाकर, उसका उत्पादन कर एक्सपोर्ट करना चाहता है. वो हथियार का एक्सपोर्ट पाकिस्तान, ईरान और तुर्की को भी करेगा. वो अपने व्यापारिक हित को कायम रखेगा, अपनी इकॉनोमी को बढ़ाने की कोशिश करेगा . अपने पड़ोसियों से संभावित खतरे को देखते हुए भी चीन ने अपना रक्षा बजट बढ़ाया है.</p>
<p style="text-align: justify;">जहां तक भारत के साथ लगते एलएसी की बात है तो वहां पर थोड़े समय के लिए आक्रामक रुख रह सकता है, लेकिन ये बड़ी चिंता की बात नहीं है. अभी तो वे अपनी इकॉनोमी को बढ़ाने की कोशिश करेंगे और रक्षा के मामले में यथास्थिति बनाए रखेंगे.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>चीन के पास अमेरिका से बड़ी नौसेना</strong></p>
<p style="text-align: justify;">चीन के पास अमेरिका से बड़ी नौसेना है. दूसरी बात ये है कि अमेरिका समेत पूरी नाटो की यूक्रेन में मौजूदगी हो गई है. वे यूक्रेन में हथियार की आपूर्ति कर रहे हैं. परोक्ष तौर पर वे इसमें शामिल हैं. अमेरिका की ग्लोबल पॉलिसी रही है. चीन का अपने प्रभुत्व वाले इलाके में विरोध करेगा, लेकिन सीधी लड़ाई नहीं होगी. तवांग पर एयरस्पेस का उल्लंघन करते हैं. समुद्र में भी सीमा का उल्लंघन करते हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">मेरा ये मानना है कि आक्रामक रुख तब तक रखेंगे जब तक वे खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे कि तवांग के मामले में अमेरिका न आ जाए. हालांकि, चीन, रक्षा बजट के मामले में भारत को भी देख रहा है. </p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार हैं. ये आर्टिकल बीजेपी राज्यसभा सांसद और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीपी वत्स से बातचीत पर आधारित है.]</strong></p>