Jamaat-e-Islami Ban: बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने गुरुवार को एक कार्यकारी आदेश के जारी करके जमात-ए-इस्लामी, इसकी छात्र शाखा और इससे जुड़े अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया. यह कदम बांग्लादेश में कई सप्ताह तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद देशव्यापी कार्रवाई के तहत उठाया गया. छात्रों के प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में करीब 150 लोग मारे जा चुके हैं और हजारों लोग घायल हुए हैं.
सत्तारूढ़ आवामी लीग और उसके राजनीतिक सहयोगी जमात पर पहले ही आरोप लगा रहे थे. इनका कहना है कि सरकारी नौकरियों के लिए कोटा सिस्टम को लेकर हाल में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़काने का काम जमात, उसके छात्र विंग इस्लामी छात्र शिबिर और अन्य प्रमुख संगठनों ने किया है. ऐसे में लगभग यह तय था कि सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों पर कुछ सख्त कदम उठाएगी. गृह मंत्रालय ने गुरुवार को गजट नोटिफिकेशन जारी करके आतंकवाद विरोधी कानून के तहत जमात पर बैन लगाया है.
जमात को सरकार ने माना आतंकी संगठन
सरकारी गजट में कहा गया है कि ‘चूंकि सरकार का मानना है कि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी, बांग्लादेश इस्लामी छात्र शिबिर और इसके अग्रणी संगठन आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं. इसलिए सरकार ने आतंकवाद निरोधक अधिनियम-2009 की धारा 18 (1) का पालन करते हुए इन्हें राजनीतिक इकाई और संगठन के रूप में प्रतिबंधित किया है.’
साल 2013 जमात को घोषित किया गया था गैर कानूनी
साल 1941 में ब्रिटिश भारत के लाहौर में सैयद अबुल अला मौदूदी द्वारा गठित इस्लामिस्ट पार्टी पर लंबे समय से प्रतिबंध लगे हुए हैं. बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद, इस पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके बाद साल 2013 में उच्च न्यायालय ने जमात के पंजीकरण को अवैध घोषित कर दिया और चुनावों में इसकी भागीदारी पर रोक लगा दी थी. क्योंकि जमात का चार्टर संविधान का उल्लंघन करता है. आदेश के खिलाफ इसकी अपील को 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. इसके बावजूद जमात राजनीतिक गतिविधियों में हमेशा से सक्रिय रहा है.
जमात के खिलाफ लड़ने वाली बैरिस्टर ने क्या कहा?
बैरिस्टर तानिया आमिर, जो जमात के खिलाफ अदालतों में लड़ती रही हैं. उन्होंने टेलिग्राफ को बताया कि ‘एक राजनीतिक दल के रूप में जमात 2013 में ही मर चुकी थी, आज सरकार ने ताबूत में कील ठोककर उन्हें दफन कर दिया.’ बताया जाता है कि बांग्लादेश की एक बड़ी आबादी जमात से नफरत करती है, क्योंकि साल 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में जमात ने पाकिस्तान से बांग्लादेश के अलग होने का विरोध किया था.
जमात के प्रमुख ने क्या कहा ?
जमात के प्रमुख शफीकुर रहमान ने इस आदेश की निंदा करते हुए इसे संविधान विरोधी बताया है. उन्होंने कहा कि हाल में हुई हिंसा में जमात शामिल नहीं रहा है. एक लिखित बयान में उन्होंने छात्रों के गैर-राजनीतिक आंदोलन को दबाने का आरोप लगाया. साथ ही जमात पर हुई कार्रवाई पर सरकार को और सरकारी एजेंसियों को दोषी ठहराया.
यह भी पढ़ेंः 30 सालों से सोई नहीं ये महिला, इतना जाग लिया कि अब नींद भी नहीं आती; कहा- ये प्रैक्टिस है कोई बीमारी नहीं