Poll Panel Selection: सरकार की तरफ से गुरुवार 10 अगस्त को संसद में एक बिल पेश किया गया, जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर हाई पावर कमेटी का प्रावधान है, लेकिन खास बात ये है कि इस कमेटी से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को बाहर रखा गया है. बिल के मुताबिक कमेटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेता विपक्ष और पीएम की तरफ से नामित एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. इससे पहले इस कमेटी में सीजेआई भी हुआ करते थे. इसी वजह से ये मामला चर्चा में है. वहीं कुछ लोग बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी की उस चिट्ठी को याद कर रहे हैं, जिसमें ऐसी नियुक्तियों में पक्षपात से बचने के लिए सीजेआई को कमेटी में शामिल करने की बात कही गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि अब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और बाकी चुनाव आयुक्तों को संविधान के अनुच्छेद 324(2) के मुताबिक सरकार की तरफ से नियुक्त किया जाता है, इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति संसद के बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के तहत समय-समय पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था फैसला
दरअसल इस मामले को लेकर विवाद इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर असर पड़ता है, जिसमें उसने कहा था कि प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की कमेटी तीन सदस्यीय ईसीआई का चयन करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब तक संसद इन नियुक्तियों को लेकर कानून पारित नहीं करता है, तब तक यही व्यवस्था लागू रहेगी. जिसके बाद सरकार कानून लाने की तैयारी कर रही है. बता दें कि चुनाव आयोग को लेकर पिछले कुछ सालों में कई गंभीर सवाल खड़े हुए हैं, जिनमें सबसे गंभीर मुद्दा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को बताया गया है.
नियुक्ति प्रक्रिया पर बीजेपी ने बदला अपना रुख
भले ही अब बीजेपी ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को बाहर रखने का फैसला किया हो, लेकिन कुछ सालों पहले ऐसा नहीं था. जब बीजेपी सत्ता में नहीं थी तो खुद उनकी तरफ से सीजेआई को पैनल में रखने की बात कही गई थी. इसे लेकर बीजेपी संसदीय दल के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 2 जून 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को एक चिट्ठी लिखी थी. जिसमें चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम के गठन की बात कही गई, साथ ही कहा गया कि चीफ जस्टिस भी इस पैनल में शामिल होने चाहिए.
आडवाणी ने कही थी ये बात
चुनाव आयोग के उच्च अधिकारियों की नियुक्ति का जिक्र करते हुए तब आडवाणी ने लिखा था, “मौजूदा प्रणाली जिसके तहत चुनाव आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं, उसमें सिर्फ प्रधानमंत्री की सलाह ली जाती है. जिससे लोगों में विश्वास पैदा नहीं होता है. ऐसे जरूरी फैसलों को सत्ताधारी पार्टी के विशेष अधिकार के तौर पर रखने से चयन प्रक्रिया में हेरफेर और पक्षपात की संभावनाएं बढ़ जाती हैं. इसीलिए नियुक्ति प्रक्रिया में संशोधन करने का वक्त आ गया है.”
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