Judiciary System: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने शनिवार को जोर देकर कहा कि समाज व स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए लोगों का भरोसा न्यायपालिका पर है. मुंबई के अशोक देसाई मेमोरियल लेक्चर देते हुए सीजेआइ ने ‘पर्याप्त नैतिकता’ को पुरुषों, उच्च जातियों और सक्षम व्यक्तियों की नैतिकता के रूप में परिभाषित किया. देसाई पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ वकील थे, जिनका 2020 में निधन हो गया था.
अशोक देसाई मेमोरियल में जस्टिस चंद्रचूड़ ‘कानून और नैतिकता: सीमाएं और पहुंच’ विषय पर बोल रहे थे. इस दौरान सीजेआई ने कहा, “संविधान बनने के बाद भी कानून प्रमुख समुदाय की नैतिकता को लागू करता रहा है. लोकतंत्र की हमारी संसदीय प्रणाली में बहुमत के वोट से कानून पारित किए जाते हैं. इसलिए सार्वजनिक नैतिकता के आसपास की बातें अक्सर बहुमत द्वारा बनाए गए कानून में अपना रास्ता बना लेते हैं. प्रभावशाली समूहों की नैतिकता कानून बनाने में आ जाती है.”
कई राज्य धर्म परिवर्तन के खिलाफ कड़े कानून लेकर आए
CJI डीवाई चंद्रचूड़ का यह बयान ऐसे समय में आया हैं, जब उत्तर प्रदेश और कर्नाटक सहित कई राज्य विवाह के लिए धर्म परिवर्तन के खिलाफ कड़े कानून लेकर आए हैं. इन कानूनों को अक्सर ‘लव जिहाद’ कानून के रूप में जाना जाता है. राज्यों द्वारा लाए गए इन कानूनों की कई समूहों और विशेषज्ञों द्वारा आलोचना की गई है. साथ ही बहुसंख्यकवाद और धार्मिक पूर्वाग्रह से निकलने वाली राजनीति के परिणाम होने के आधार पर संवैधानिक अदालतों के समक्ष भी इन क्षेत्रीय कानूनों को चुनौती दी गई है.
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न्यायपालिका की भूमिका के बारे में भी CJI ने रखी अपनी बात
शनिवार (17 दिसंबर) को मुंबई के इसी कार्यक्रम में सीजेआई ने कहा, “नैतिकता की रक्षा की आड़ में राज्य ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने के लिए कानून की दमनकारी शक्ति का उपयोग करने की कोशिश की है, जो संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार हैं. इस प्रकार कानूनों में हम पाते हैं कि नैतिकता ने हमेशा प्रभावित किया है. कानून की व्याख्या कैसे की जाती है और इसे कैसे लागू किया जाता है.” इसी कार्यक्रम में सीजेआई ने सभी उल्लंघनों के खिलाफ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका की भूमिका के बारे में भी अपनी बात रखी.
बता दें कि कोलेजियम सिस्टम को लेकर भारत के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ और कानून मंत्रि किरेन रिजिजू के बीच तीखी बहस छिड़ी हुई है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर दोनों ही आमने-सामने हैं. पिछले कई दिनों से न्यायपालिका में पारदर्शिका को लेकर बयानबाजी तेज है.
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