वैश्विक महामारी खासकर कोविड-19 की दूसरी लहर के भयावह हालातों को शायद ही कोई भूल सकता है. जब यह हमारी जिंदगी, रोजी-रोटी और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन गया था. हालांकि लोग अब अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में वापस लौटने लगे हैं. दिनचर्या में लौटने लगे हैं, विदेशी कंपनियां आगे आ रही हैं और अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ रही है. इसके बावजूद कोविड अभी भी सामान्य जीवन के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों के लिए खतरा बना हुआ है. इंसानों में पहली बार कोविड-19 दिसंबर 2019 की शुरुआत में चीन के वुहान से फैला था. तब से ये वायरस दुनिया भर में अधिकतर इंसान से- इंसान के संपर्क के जरिए फैलता चला गया है.
कोविड ने केवल इंसानी जिंदगी पर ही असर नहीं डाला, बल्कि दुनिया भर में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को भी गंभीर तौर से प्रभावित किया. इससे आर्थिक गतिविधियों को बड़ा झटका लगा है और वो पटरी से उतर गई हैं. यह अभी भी मौतों, गंभीर बीमारियों और जीवन के ढर्रे को बदलने की वजह बन रहा है. चीन में जो महामारी का केंद्र था वहां जनता के लिए चीजें बमुश्किल बदली हैं, इसकी ‘शून्य-कोविड’ नीति के तहत महामारी के सख्त नियम अभी भी लागू हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, महामारी शुरू होने के बाद से चीन में 97.14 लाख करोड़ कोरोना वायरस मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें संक्रमण के कारण 5,226 मौतें हुई हैं.
चीनी प्रशासन का मानना है कि अनियंत्रित कोविड प्रकोप कई कमजोर लोगों और बुजुर्गों को जोखिम में डाल देगा, इसलिए यहां की सरकार महामारी पर काबू पाने, जीवन और आजीविका बचाने के लिए यहां के लोगों से जबरन एक शून्य-कोविड नीति (Zero-Covid policy) का पालन करा रही है. चीन की इसी नीति की वजह से यहां कारखाने और बंदरगाह लंबे वक्त तक बंद रहे. एक तरह से यहां देश का सबसे लंबा कर्फ्यू लगा दिया गया है और 40 लाख चीनी लोगों को 3-4 महीने तक उनके घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी गई है. कोविड मामलों में उछाल के बीच शहर के अंदर और बाहर सार्वजनिक आवाजाही पर भी ये प्रतिबंध लगाए गए हैं.
हालांकि, लॉकडाउन के उपाय काम नहीं कर रहे हैं, क्योंकि दैनिक कोरोना वायरस के मामले बताते हैं कि शून्य-कोविड नीति काफी हद तक विफल रही है. यह न केवल इस देश में विदेशी कंपनियों के साथ काम को प्रभावित कर रहा है, बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों में कारोबारों और उपभोक्ताओं पर भी असर डाल रही है. इसकी वजह है ये कि चीन दुनिया में बड़े पैमाने पर माल निर्यात करने वाले देश के तौर पर जाना जाता है. दुनिया के अधिकांश देशों को सामनों की आपूर्ति इसी देश से होती है.
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वैश्विक महामारी में लगभग तीन वर्षों में एक कड़ी शून्य-कोविड नियंत्रण नीति के पर चीन अब तक अड़ा हुआ है. उसके इस अड़ियलपन से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने की उम्मीद कर रहे निवेशकों को नुकसान पहुंच रहा है. चीन में कोविड लॉकडाउन के विरोध प्रदर्शनों की आग इस देश में विदेशी कंपनियों के प्लांट तक भी पहुंचने लगी है. हालिया मामला एप्पल के आईफोन प्लांट में कर्मचारियों के बड़े पैमाने पर असंतोष का है. चीन में इस तरह के हालात बता रहे हैं कि वहां सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
इससे अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ रहा है और बड़े पैमाने पर निराशा को बढ़ावा मिल रहा है. चीन के सख्त प्रतिबंधों ने लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को बदल कर रख दिया है. इसने अर्थव्यवस्था को भी हिला कर रखा है. इससे श्रमिकों के विरोध की लहर सी आ गई है. चीन की इस नीति से जनता में निराशा बढ़ी है और पिछले पखवाड़े से लोगों और समुदायों को हुआ नुकसान अब व्हाइट पेपर जैसे अनोखे प्रदर्शनों में बदल गया है. सख्त बाधाओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हो रहा ये विरोध अब अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींच रहा है.
My latest survey indicates that Foxconn will accelerate the expansion of iPhone production capacity in India after Zhengzhou iPhone plant’s COVID-19 lockdown. https://t.co/xQm39OBGpH
— 郭明錤 (Ming-Chi Kuo) (@mingchikuo) November 4, 2022
चीन में सबसे बड़ी आईफोन फैक्ट्री में श्रमिक असंतोष
फॉक्सकॉन आईफोन प्लांट में लगभग 2 लाख कर्मचारी काम करते हैं. चीन के झेंग्झौ ( Zhengzhou) शहर में मौजूद यह प्लांट इस कंपनी के दुनिया में सबसे बड़े प्लांट्स में से एक माना जाता है. साइट के अंदर सख्त कोविड नियमों पर श्रमिकों की नाराजगी ने इस प्लांट पर भी असर डाला है. कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए इस प्लांट में आंशिक तौर पर लॉकडाउन लगाया गया था.
इस शहर के प्रशासन ने इस आईफोन फैक्ट्री को घेरे हुए औद्योगिक क्षेत्र तक पहुंच पर रोक लगा रखी है. ताजा विरोध प्लांट में बड़े पैमाने पर कर्मचारी असंतोष का नतीजा और यह एप्पल के लिए एक अड़चन की तरह है. फॉक्सकॉन ने मेस और कैंटीन में सभी में खाना खाने पर रोक लगा दी और श्रमिकों से कहा कि वे अपना खाना अपने शयनगृह में ले जाएं. ऐसे में कई कर्मचारी हालातों की अनिश्चितता और पर्याप्त खाना नहीं मिलने की शिकायत कर रहे थे.
कई लोगों ने कोविड के डर से फ़ैक्ट्री छोड़ दी है और हज़ारों लोग लॉकडाउन से आज़ादी की मांग कर रहे हैं. चीनी सोशल मीडिया पर चल रहे एक वीडियो में फॉक्सकॉन के कर्मचारियों को सामान से लदे अपने गृहनगर की ओर जाते हुए दिखाया गया है.उन्हें काम पर बनाए रखने के लिए फॉक्सकॉन ने और अधिक बोनस की पेशकश की है.
सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि, नए काम पर रखे गए कर्मचारियों ने कहा कि प्रबंधन अपने वादों से मुकर गया है. फॉक्सकॉन के वीचैट अकाउंट के मुताबिक श्रमिकों के लिए दैनिक बोनस नवंबर के लिए पहले से घोषित 100 युआन से बढ़ाकर 400 युआन प्रतिदिन करने की पेशकश की गई थी.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एप्पल के इस प्लांट में जिन कर्मचारियों ने 25 दिनों से अधिक काम किया है, वे अब अधिकतम 1500 युआन से 5000 युआन का अधिकतम बोनस पा सकते हैं. इसके साथ ही जिन कर्मचारियों प्लांट में पूरी तरह काम करने की कोशिश की यानी पूरे नवंबर के दौरान कोई भी छुट्टी नहीं ली, उन्हें महीने के लिए कुल 15,000 युआन से अधिक का भुगतान किया जाएगा. चीन में इस तरह के हालात एप्पल जैसी वैश्विक स्तर की कंपनियों को भारत में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए आकर्षित कर सकते हैं.