ISRO Chief Shridhar Parikar Somnath: चंद्रयान-3 ने जैसे ही चांद के साउथ पोल पर सफल लैंडिंग की पूरा देश उत्साह से झूम उठा. इसके बाद दो नाम लगभग हर किसी की जुबान पर था, एक इसरो और दूसरा इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसरो चीफ को बधाई देते हुए कहा, “आपका तो नाम ही सोमनाथ है. सोमनाथ जी… आपका नाम सोमनाथ भी चंद्रमा से जुड़ा हुआ है. आपके परिवार के सदस्य भी खुश होंगे. आपको और आपकी टीम को बधाई. कृपया मेरी शुभकामानाएं सभी तक पहुंचाएं. अगर संभव हुआ तो मैं जल्दी ही व्यक्तिगत रूप से आपका अभिवादन करूंगा.”
इसरो के चेयरमैन का पूरा नाम श्रीधर परिकर सोमनाथ है. उन्हें 4 जनवरी 2022 को इसरो का चेयरमैन बनाया गया. डॉ सोमनाथ ने 1985 में विक्रम सारा भाई स्पेस सेंटर ज्वाइन किया था. इसके बाद वे अंतरिक्ष से जुड़े कई प्रोजेक्ट में मुख्य भूमिका में रहे हैं. डॉ सोमनाथ लिक्वड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर के निदेशक रहे हैं. इसके अलावा जीएसलवी-मार्क-3 के परियोजना निदेशक, पीएसएलवी के परियोजना मैनेजर रहे हैं.
उन्हें रॉकेट स्टक्चरल सिस्टम, मैकेनिज्म, पायरो सिस्टम में दक्षता हासिल हैं. उन्होंने स्वदेशी क्रायोजेनिक बनाने में भी अपना योगदान दिया है. उनका योगदान मिशन मंगल, मिशन मून और मिशन आदित्य एल1 में भी रहा है.
बचपन, पढ़ाई और इसरो
डॉ एस सोमनाथ का जन्म 1963 में केरल के अलापूझा में हुआ था. उनके पिता हिंदी के टीचर थे. उन्होंने शुरुआती पढ़ाई मलयालम भाषा में की है. स्पेस के प्रति रुचि पैदा होने के लेकर वे कहते हैं मैं स्कूल से ही सूरज, चांद और तारों को लेकर कल्पना करता था.संसद टीवी को दिए एक इंटरव्यू में एस. सोमनाथ ने कहा है, “जब मैं स्कूल में था तो दूसरों की तरह मैं भी स्पेस को लेकर काफी फैसिनेटिंग था. मैं सूरज, चांद और तारों को लेकर कल्पना करता था. पिता मेरे लिए एस्ट्रोनॉमी और इंग्लिश की कुछ किताबें लेकर आते थे. तब मुझे इंग्लिश नहीं आती थी, मेरी स्कूल की पढ़ाई मलयालम में चल रही थी. स्कूल का समय काफी मज़ेदार था.“
स्कूल ख़त्म करने के बाद एस. सोमनाथ ने केरल यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने बैंगलोर के भारतीय विज्ञान संस्थान से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल किया.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बारे एस. सोमनाथ ने कहते हैं, “जब मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए गया तब वास्तव में मैंने स्पेस को लेकर अपने अंदर रुचि विकसित की. मुझे किसी भी फील्ड में कोई स्पेशेलाइजेशन नहीं था, लेकिन पढ़ाई के दौरान प्रोपल्शन में मेरी रुचि बढ़ गई. तब मैंने अपने प्रोफेसर से पूछा कि आप प्रोपल्शन की पढ़ाई कोर्स में शामिल क्यों नहीं कर रहे हैं. तब प्रोफेसर ने मुझे कहा कि मैं पढ़ कर आउंगा फिर तुम्हें पढ़ाऊंगा. ऐसे मेरी प्रोपल्शन की पढ़ाई शुरु हुई.”
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