हमारे देश में एक वक्त ऐसा था, जब दुनियाभर से लोग यहां आते थे. सातवीं शताब्दी में चीन से ह्वेनसांग का भारत आना हो, 11वीं शताब्दी में अलबरूनी का या फिर 14वीं शताब्दी में इब्न बतूता का आगमन हो. हमारे देश की विरासत ऐसी रही है कि दुनियाभर से लोग यहां आते थे. लेकिन समय का पहिया घूमता है और फिर ये ऐसा घूमता है कि चीजें बिल्कुल उलट हो जाती हैं. वर्तमान समय में ऐसा ही देखने को मिल रहा है, जब लाखों की संख्या में भारतीय देश छोड़कर विदेशों का रुख कर रहे हैं.
14 मार्च को लोकसभा में पेश किए गए दस्तावेज़ में कहा गया है साल 2022 में इमिग्रेशन एक्ट, 1983 के तहत 3,73,434 भारतीयों का इमिग्रेशन क्लियरेंस जारी किया गया, जिनमें से 10,654 लोग पंजाब से थे.
इन 18 देशों में जा रहे हैं भारतीय
इमिग्रेशन एक्ट, 1983, भारत के नागरिकों को विदेशों में रोजगार करने का अवसर प्रदान करता है. इस कानून के तहत 18 देशों में भारतीय को रोजगार के लिए इमिग्रेशन क्लियरेंस जारी किया जाता है. यह देश हैं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, इंडोनेशिया कतर, ओमान, कुवैत, बहरीन, मलेशिया, लीबिया, जॉर्डन, यमन, सूडान, दक्षिण सुडान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, सीरिया, लेबनान और थाईलैंड.
वहीं शिरोमणि अकाली दल (SAD) की सांसद हरसिमरत कौर बादल के एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा, “2001-2011 के दौरान पंजाब राज्य में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर 13.9 है. वहीं ई-माइग्रेट पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में अखिल भारतीय स्तर पर कुल 3,73,434 इमिग्रेशन क्लीयरेंस जारी किए गए थे जिसमें 10,654 क्लियरेंस केवल पंजाब से जारी किए गए हैं.
2020 तक 1.8 करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे थे
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस पलायन पर बेहद ही अच्छे तरीके से रोशनी डालती है. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 तक 1.8 करोड़ भारतीय विदेशों में रह रहे थे. यहां गौर करने वाली बात ये है कि दुनियाभर में 3.2 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनका संबंध भारत से है. इसमें से 1.8 करोड़ तो सीधे तौर पर भारत के नागरिक हैं. हैरानी वाली बात ये है कि भारतीयों की जितनी आबादी विदेशों में है. उतनी तो कई देशों की जनसंख्या भी नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग के जनसंख्या प्रभाग द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन 2020 हाइलाइट्स’ की मानें, तो युक्त अरब अमीरात (UAE), अमेरिका और सऊदी अरब, ये तीन ऐसे देश है जहां भारतीय सबसे ज्यादा माइग्रेट हुए हैं. इसके अलावा, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड भी ऐसे कुछ देश हैं, जहां पर भारतीय बसे हुए हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों की देश छोड़ने की मुख्य वजह रोजगार, बेहतर जिंदगी और पैसा रही है.
भारत की नागरिकता भी छोड़ रहे हैं लोग
चीन और पाकिस्तान में भी बस रहे हैं भारतीय लोग
5 साल में 8 लाख लोगों ने ले ली विदेश की नागरिकता
आंकड़ों के अनुसार साल 2015 से 2020 के बीच यानी 5 सालों के बीच आठ लाख से ज़्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी. हालांकि साल 2020 में इस आंकड़े में कमी आई थी, लेकिन कारण कोरोना महामारी माना जा रहा है.
आखिर भारतीय क्यों विदेश में बस रहे हैं
भारत से हर साल लाखों लोग अपना देश छोड़ विदेश में बस जाते हैं. यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. इन सब के बीच सवाल उठता है कि आख़िर भारतीय अपना देश छोड़ अन्य देशों में क्यों बसना पसंद कर रहे हैं.
क्या कहते हैं विदेश में रहने वाले लोग
बेहतर सुविधा, नए मौक़े और अच्छे भविष्य की तलाश: कनाडा में रहने वाली प्रिया (बदला हुआ नाम) कहती हैं, मैं पिछले 5 साल से यहां के एक कंपनी में काम कर रही हूं और भविष्य में नागरिकता लेकर यहीं की सिटिजन बन जाना चाहती हूं. उन्होंने कहा कि भारत की तुलना में यहां उन्हें बेहतर सुविधा, नए मौक़े और अच्छा भविष्य नजर आता है.
उन्होंने कहा कि भारत की तुलना में यहां कि जिंदगी ना सिर्फ बेहतर है बल्कि आसान भी है. कनाडा में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग अच्छी है. भविष्य में उनकी शादी और बच्चे होते हैं तो उनकी पढ़ाई अच्छी होगी पढ़ाई अच्छे से हो जाती है. उन्हें मौके भी भारत से बेहतर मिलेंगे.”
जितना मेहनत उस हिसाब से पैसे: न्यूयॉर्क में रह रहे अंकित का भी कुछ ऐसा ही मानना है. अंकित श्रीवास्तव साल 2003 से ही यहां रह रहे हैं. उन्होंने कहा मैं आया तो यहां पढ़ाई करने था लेकिन पिछले कुछ साल से नौकरी कर रहा हूं. अंकित फिलहाल तो भारतीय पासपोर्ट का ही इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन वह जल्द ही यहां की नागरिकता के लिए अप्लाई कर देंगे. उनका मानना है कि न्यूयॉर्क में भारत की तुलना में काम करने का माहौल अच्छा है और जितना आप काम करते हैं उस हिसाब से पैसे भी अच्छे मिलते हैं इसलिए वह भारत वापस नहीं जाना चाहते.
अपने देश की आती है याद लेकिन रोजगार की कमी: राहुल यादव जो सऊदी अरब के एक फर्म में काम करते हैं, ने कहा, ‘भारत में ज्यादातर लोग विदेश जाकर काम करना चाहते हैं, इस बात में कोई दोराय नहीं है कि यहां का वर्क कल्चर भारत से बेहतर है. लेकिन विदेश आकर बेहतर जिंदगी की तलाश में हम यहां बस तो जाते हैं लेकिन अपना देश हमेशा ही याद आता है.
उन्होंने कहा कि भावनात्मक जुड़ाव के कारण मैंने अब तक भारत की नागरिकता नहीं छोड़ी है. लेकिन उनकी पत्नी भी इसी देश की है और बच्चे भी. उन्होंने कहा कि अगर भारत भी कुछ देशों की तरह दोहरी नागरिकता की इजाजत देता तो भारत की नागरिकता छोड़ने वालों में कमी आ जाती.
उन्होंने कहा कि मुझे बस हा ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत के लोग बड़े देशों की तरफ बढ़ रहे हैं. बेहतर सुविधाएं और बेहतर जिंदगी उन्हें आकर्षित कर रही है. लेकिन भारत में राजगार की इतनी कमी है कि लाखो लोग छोटे देश भी जाते हैं. कई ऐसे छोटे देश भी हैं जो व्यापार के लिए बेहतर सुविधाएं देती हैं. कई लोगों के परिवार भी ऐसे देशों में बसे होते हैं, इसलिए वो उन्हीं से साथ वहां काम करने चले जाते हैं.”
100 से ज्यादा देशों में 3.2 करोड़ से ज्यादा प्रवासी भारतीय
गृह मंत्रालय के मुताबिक विश्व के 100 से ज्यादा देशों में 3.2 करोड़ से ज्यादा भारतीय रहते हैं. वहीं बीते 28 साल के अंदर विदेश जाकर रह जाने वाले भारतीयों की संख्या में 346 प्रतिशत की बढ़त हुई है. विदेश में रहने वाले भारतीयों की संख्या साल 1990 में 90 लाख थी.
प्रवासी भारतीय किसे कहते हैं, कितनी कैटेगरी में बांटा गया है?
विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत के वह लोग जो अन्य देशों में बेहतर जिंदगी, पढ़ाई या किसी भी वजह से चले गए उन्हें ही प्रवासी भारतीय कहते हैं. इन प्रवासियों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है.
1. NRI : एनआरआई (नॉन रेजिडेंट इंडियन) का मतलब है ऐसे भारतीय नागरिक जो बेहतर रोजगार और शिक्षा के लिए अस्थायी रूप से यानी 6 महीने के लिए दूसरे देश में चले गए हों. इनमें से कुछ भारतीय नागरिक ऐसे भी होते हैं जो विदेश में बस जाते हैं और वहीं की नागरिकता हासिल कर लेते है.
2. PIO : पीआईओ (पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन), इस कैटेगरी में वो लोग आते हैं, जो जन्म से या वंश से तो भारतीय होते हैं, लेकिन वह अब भारत में नहीं रहते हैं. आसान भाषा में समझे तो अगर किसी व्यक्ति के पिता विदेश में जाकर बस जाते हैं और उस व्यक्ति का जन्म उसी देश में होता है तो वह व्यक्ति भारतीय मूल का कहा जाएगा. लेकिन उनके पास भारतीय नागरिकता नहीं होगी.
दुनिया के कई देश ऐसे हैं जहां आप दोहरी नागरिकता ले सकते हैं. लेकिन भारत में ऐसा कानून नहीं है. भारतीय नागरिकता क़ानून के अनुसार कोई व्यक्ति जब किसी और देश की नागरिकता ले लेता है तो उसे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है.
विश्व भर में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है जो बेहतर जिंदगी की तलाश में अमेरिका, ब्रिटेन या कनाडा जैसे देश में बस चुके हैं लेकिन उनका भारत से जुड़ाव बना हुआ है. ऐसे लोगों को भारत आने के लिए वीजा लेना पड़ता था, उन लोगों के लिए ही साल 2003 में भारत सरकार ने पीआईओ कार्ड का प्रावधान किया था.
3. OCI: गृह मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, ओसीआई कार्ड के धारकों के पास भारतीय नागरिकों की तरह सारे अधिकार होते हैं. हालांकि, उनके पास 4 अधिकार नहीं होते हैं.
1. वह चुनाव नहीं लड़ सकते.
2. वह वोट नहीं डाल सकते.
3. वह सरकारी नौकरी या संवैधानिक पद पर नहीं हो सकते
4. वह खेती वाली जमीन नहीं खरीद सकते.
अंतरराजयीय प्रवासन की संख्या में भी उछाल
इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के भारत के अंदर भी रोजगार की तलाश में एक राज्य से दूसरे राज्य माइग्रेट करने वालों की संख्या में हर साल बढ़ोतरी हो रही है. गांव में रहने वाली महिलाएं ज्यादा पलायन कर रही हैं. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार माइग्रेट करने वाले ज्यादातर लोग शहरी क्षेत्रों में बस रहे हैं. साल 2020- 21 की रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 26.5% और शहरी क्षेत्रों में 34.9% पलायन हुआ है.
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