Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार (7 फरवरी) को वकील लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी की मद्रास हाईकोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. उधर विक्टोरिया गौरी ने जज के रूप में शपथ ले ली है. हालांकि, इस अहम घटना को देखते हुए एक सवाल ये भी है कि क्या पहले कभी भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जज की नियुक्ति को खारिज किया है? तो इसका जवाब है ‘हां’, एक बार ऐसा हुआ है. चलिए आपको पूरा मामला विस्तार से बताते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में हाई कोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति को रद्द करने का केवल एक ही उदाहरण है. ये असाधारण कार्रवाई 1992 के कुमार पद्म प्रसाद बनाम भारत संघ और अन्य 1992 2 एससीसी 428 मामले में हुई. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने के.एन श्रीवास्तव की नियुक्ति को खारिज कर दिया था. वो गौहाटी हाई कोर्ट में बतौर जज शपथ लेने वाले थे.
बार ने दिया था ये तर्क
1992 के मामले में विवाद तब पैदा हुआ जब बार काउंसिल के एक वर्ग ने श्रीवास्तव की नियुक्ति पर आपत्ति जताई. बार ने कहा कि उन्होंने कभी भी वकील के रूप में प्रैक्टिस नहीं की और ना ही कोई न्यायिक कार्यालय संभाला. बार ने ये भी कहा कि के.एन श्रीवास्तव संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत निर्धारित मूल योग्यता को पूरा नहीं करते.
हाईकोर्ट ने केंद्र को दिया था पुनर्विचार का निद्रेश
श्रीवास्तव मिजोरम सरकार के कानून और न्यायिक विभाग में सचिव स्तर के अधिकारी थे और उस क्षमता में कुछ न्यायाधिकरणों और आयोगों के सदस्य भी रहे. जब एक वकील ने उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की तो गौहाटी हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि श्रीवास्तव के लिए राष्ट्रपति के नियुक्ति वारंट को प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट ने आगे केंद्र सरकार को उनकी नियुक्ति पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया और उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर की थी नियुक्ति रद्द
उल्लेखनीय है कि के.एन श्रीवास्तव के खिलाफ भ्रष्टाचार और धन की हेराफेरी के आरोप भी लगे थे. हालांकि, अदालत ने उन पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया और कानूनी मुद्दे पर इस मामले का फैसला किया. जस्टिस कुलदीप सिंह, पीबी सावंत और एनएम कासलीवाल की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पाया कि श्रीवास्तव कार्यकारी (Executive) के नियंत्रण में एक पद पर थे और इसलिए यह एक न्यायिक कार्यालय नहीं था.
अब फिर दिया गया इसी मामले का हवाला
मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में एडवोकेट एल विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को चुनौती देने के लिए 1992 के इसी केस का हवाला दिया गया है. वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी थी कि उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों (Religious Minority) के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए हैं.
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