Ghaziabad News: गाजियाबाद में कोरोना से हुई मौतों के मामलों में आंकड़ों को लेकर किया गया खेल अब सामने आता दिख रहा है. गाजियाबाद स्वास्थ्य विभाग ने पहली से लेकर तीसरी लहर तक कोरोना से मरे लोगों की कुल संख्या 474 बताई है जबकि प्रशासन ने मुआवजे के तौर पर 1456 मृतकों के आश्रितों को पैसे दिए गए. ऐसे में अब स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के आंकड़ों के बीच बड़ा अंतर सामने आ रहा है. सवाल ये हैं कि आखिर किसका आकंड़ा सही माना जाए.
स्वास्थ्य विभाग की ओर से दिए गए थे ये आंकड़ें
कोरोना काल में गाजियाबाद स्वास्थ्य विभाग द्वारा अपने पोर्टल पर कोरोना की वजह से जान गंवाने वाले लोगों का आंकड़ा दर्ज किया गया था. पहली लहर में स्वास्थ्य विभाग की तरफ से 102 लोगों में कोरोना से मौत दर्शाई गई. दूसरी लहर में 359 तो वहीं तीसरी लहर में कोरोना की वजह से 13 लोगों की मौत होना बताया गया. इस तरह स्वास्थ्य विभाग के आकंड़ों के मुताबिक तीनों लहरों में कोरोना की वजह से कुल 474 लोगों की मौत की पुष्टि की गई.
प्रशासन के आंकड़ें बया कर रहे हैं अलग दास्तां
सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से मरे लोगों के आश्रितों को मुआवजा देने का आदेश दिया तो प्रशासन के पास इसके लिए अर्जी आनी शुरू हुईं. जिसमें कुछ नियम भी शामिल थे. मृतकों के आश्रित कोरोना से हुई मौत के सबूत लेकर प्रशासन के पास आने लगे. वे आरटीपीसीआर रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर पहुंचे. जिला प्रशासन ने जांच-पड़ताल के बाद 1456 को मुआवजा भी दे दिया गया. ये आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आंकड़े से कहीं ज्यादा है. अब ऐसे में ये भी सवाल पैदा हुआ कि स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर क्यों हैं?
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जानिए इस मामले पर क्या कहते हैं अधिकारी
इस पूरे मामले पर एडीएम वित्त विवेक श्रीवास्तव का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 50 हजार रुपये मुआवजा दिया जा रहा है. जो लोग अपने परिजन की कोरोना से मौत की पुष्टि के लिए साक्ष्य दे रहे हैं, उन्हें मुआवजा दिया जा रहा है. वहीं गाजियाबाद के सीएमओ भवतोष शंखधर का कहना है कि प्रशासन ने उन सभी लोगों को मुआवजा दे दिया है. जिन्होंने अपने परिजन की कोरोना से मौत के दस्तावेज दिए. मृतकों में वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जो रहने वाले गाजियाबाद के हों, लेकिन उनकी मौत जिले से बाहर हुई हो. स्वास्थ्य विभाग के पोर्टल पर उन लोगों का ही आंकड़ा दर्ज है जो यहीं के रहने वाले हैं और उनकी मौत भी यहीं हुई.
अब ऐसे में स्वास्थ्य विभाग पर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं, जिन पर गाजियाबाद की जनता को विश्वास करना मुश्किल हो रहा है. लोगों का यह भी मानना है कि अपने बड़े अधिकारी को असली जानकारी से वंचित रख कर जिले में कोरोना के प्रति ज्यादा नुकसान ना दिखाने की कोशिश की गई.
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