Supreme Court On EC And CEC Appointment: चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में ज्यादा पारदर्शिता लाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल देख सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा है. कोर्ट ने पूछा, “15 मई से पद खाली था. अचानक 24 घंटे से भी कम समय में नाम भेजे जाने से लेकर उसे मंजूरी देने की सारी प्रक्रिया पूरी कर दी गई. 15 मई से 18 नवंबर के बीच क्या हुआ?”
कोर्ट ने आगे कहा, “कानून मंत्री ने 4 नाम भेजे… सवाल यह भी है कि यही 4 नाम क्यों भेजे गए. फिर उसमें से सबसे जूनियर अधिकारी को कैसे चुना गया. रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इस पद पर आने से पहले VRS लिया.” वहीं सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रक्रिया में कुछ गलत नहीं हुआ. पहले भी 12 से 24 घंटे में नियुक्ति हुई है.
‘हम सिर्फ प्रक्रिया को समझना चाहते हैं’
एजे के जवाब से जज असहमत दिखे. उन्होंने आगे कहा, “हम सिर्फ प्रक्रिया को समझना चाह रहे हैं. आप यह मत समझिए कि कोर्ट ने आपके खिलाफ मन बना लिया है. अभी भी जो लोग चुने जा रहे वह CEC के पद पर 6 साल नहीं रह पाते हैं.” इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि “नाम लिए जाते समय वरिष्ठता, रिटारमेंट, उम्र आदि को देखा जाता है. इसकी पूरी व्यवस्था है. यह यूं ही नहीं किया जाता. सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका की छोटी-छोटी बातों की यहां समीक्षा होगी.”
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एजे के जवाब से जज संतुष्ट नहीं हुए और दोबारा पूछा कि आखिर यही चार नहीं क्यों लिए गए, फिर उनमें से सबसे जूनियर का चयन क्यों किया गया? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा, “4 नाम DoPT के डेटाबेस से लिए गए और वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं.”
‘सत्तारूढ़ दल यस मैन की नियुक्ति करता है’
इससे पहले, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल करने से निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि केंद्र में कोई भी सत्तारूढ़ दल “सत्ता में बने रहना पसंद करता है” और मौजूदा व्यवस्था के तहत पद पर एक “यस मैन” (हां में हां मिलाने वाला व्यक्ति) नियुक्त कर सकता है.
इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें निर्वाचन आयुक्तों (EC) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली का अनुरोध किया गया है. केंद्र ने दलील दी कि 1991 के अधिनियम ने सुनिश्चित किया है कि निर्वाचन आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहता है और ऐसा कोई बिंदु नहीं है जो अदालत के हस्तक्षेप को वांछित करता हो.
जस्टिस के. एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि संस्थान की स्वतंत्रता उस सीमा पर सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसके लिए प्रवेश स्तर पर नियुक्ति की जांच पड़ताल की जानी है. पीठ में जस्टि अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार शामिल हैं.
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