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Russia Vs America: दुनिया की महाशक्ति अमेरिका रूस को लेकर आशंकित होने लगीं है. उसे रूस के दुनिया के निरंकुश देशों के साथ नजदीकियां बढ़ाना रास नहीं आ रहा है. रूस की नजदीकियों को पश्चिमी देश एक चेतावनी की तरह ले रहे हैं. अमेरिका की एक हालिया खुफिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि रूस, उत्तर कोरिया से सोवियत काल के ‘‘लाखों’’ हथियार खरीदने की योजना बना रहा है. ब्रिटेन के रक्षा खुफिया तंत्र ने भी इसकी पुष्टि की है कि रूस पहले ही यूक्रेन में ईरान के बनाए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है.
क्यों है एतराज अमेरिका को रूस के याराने से
बीते महीने 15 अगस्त को उत्तर कोरिया के मुक्ति दिवस के जश्न के मौके पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन (Kim Jong-Un) के बीच बातचीत हुई. इसका कूटनीतिक नतीजा रूस के उत्तर कोरिया से सोवियत काल के ‘‘लाखों’’ हथियार खरीदने की योजना के तौर पर सामने आया. इस दौरान इन दोनों नेताओं ने नए सामरिक और रणनीतिक सहयोग पर सहमति जताई. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच मित्रता बढ़ाने पर भी जोर दिया. कुछ दिन पहले ही पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (Iranian President Ibrahim Raisi) से मुलाकात की थी.
रूस ने ईरान में एक अहम व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजने का वादा किया था. उन्होंने ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का पूर्णकालिक सदस्य बनाने के लिए हरसंभव प्रयास करने का वादा भी किया था. इस राजनीतिक और सुरक्षा गठबंधन में रूस, चीन, उज्बेकिस्तान और पाकिस्तान शामिल हैं. गौरतलब है कि यूक्रेन पर हमला करने के बाद से रूस पश्चिमी देशों से अलग-थलग हो गया है. इसके बाद से उसका जोर दुनिया के निरंकुश देशों खासतौर से उत्तर कोरिया और ईरान के साथ अपने सहयोग को बढ़ाने पर है. इस गठजोड़ में चीन भी शामिल हो सकता है. इसी से पश्चिमी देश डरे हुए हैं. उन्हें लगता है कि आने वाले वर्षों में ये गठजोड़ पश्चिमी देशों के सामने एक असल खतरा बन कर उभरेगा.
शीतयुद्ध के वक्त से करीब है प्योंगयांग
मॉस्को (Moscow) के शीतयुद्ध के दौरान प्योंगयांग के साथ करीबी कूटनीतिक संबंध रहे हैं. सोवियत संघ उत्तर कोरिया के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदारों में से एक रहा है. यह रिश्ता 1991 में नाटकीय रूप से तब बदल गया था, जब सोवियत संघ का विघटन हो गया था. रूस कम्युनिस्ट देश नहीं रहा और उसका ध्यान पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ सकारात्मक संबंध बनाने पर केंद्रित हो गया. उसने वैचारिक संबंधों के बजाय आर्थिक संबंधों को तरजीह दी थी. नतीजन अमेरिका और दक्षिण कोरिया से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं. इसी वजह से प्योंगयांग के साथ उसके रिश्ते खराब हो गए और उत्तर कोरिया ने चीन के साथ करीबी संबंध बनाने पर ध्यान दिया.
उत्तर कोरिया का अलग-थलग पड़ना
जब पुतिन 2000 में सत्ता में आए तो उत्तर कोरिया के साथ रूस के कूटनीतिक संबंधों को नए सिरे से शुरू करने की कोशिशें की गईं. किम जोंग-उन के पिता किम जोंग-इल तो कुछ मौके पर रूस भी गए. हालांकि विदेश नीति के लिए रूस के गहन व्यावहारिक रुख से इस रिश्ते में खटास पड़ गयी. पश्चिमी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए क्रेमलिन लगातार प्योंगयांग के परमाणु कार्यक्रम की निंदा करता रहा. अब रूस के यूक्रेन के हमले के बाद से रूस भी अलग-थलग पड़ गया है. ऐसे में आर्थिक और राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़े रूस को अब दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने का मौका मिला है.
उत्तर कोरिया की चीन से करीबी
सोवियत संघ के विघटन के बाद उत्तर कोरिया व्यापार और ऊर्जा के लिहाज से काफी हद तक बीजिंग (Beijing) पर निर्भर हो गया है. लेकिन यह रिश्ता भी राजनीतिक तनाव से मुक्त नहीं है. कोरियाई प्रायद्वीप में चीन का अहम मकसद उत्तर कोरिया की निरंकुश सरकार को गिरने से बचाना और दक्षिण कोरिया के साथ दोबारा एक होने से रोकना है. यह चीन को मंजूर नहीं होगा क्योंकि उसे डर है कि कोरियाई देशों के एकजुट होने से इलाके में अमेरिका की भागीदारी बढ़ेगी. चीन और उत्तर कोरिया के बीच रिश्तों में यही वजह किम जोंग उन को मॉस्को से नजदीकी बढ़ाने के लिए मजबूर करती है. रूस से करीबी रिश्ते रखने पर उत्तर कोरिया को सस्ती दरों पर ऊर्जा मिल सकती है. इसलिए रूस से वह अपना तकनीकी, वैज्ञानिक एवं वाणिज्यिक सहयोग बढ़ा सकता है.
रूस का झुकाव है सकारात्मक
लैंकेस्टर विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्याख्याता (Lecturer) बारबरा योक्सोन जैसे कुछ लोगों का कहना है कि उत्तर कोरिया के लिए रूस का झुकाव एक सकारात्मक संकेत है. उन्होंने दावा किया कि हथियारों के लिए रूस के अनुरोध का मतलब है कि क्रेमलिन के खिलाफ सैन्य और आर्थिक प्रतिबंध काम कर रहे हैं. अन्य देशों से हथियार न खरीद पाने के कारण पुतिन उत्तर कोरिया तथा ईरान का रुख कर रहे हैं जिनके हथियारों को अविश्वसनीय माना जाता है. यह सच है कि दुनिया के सबसे खतरनाक निरंकुश देशों के बीच करीबी संबंध पश्चिमी के लिए सख्त चेतावनी है. उत्तर कोरिया तथा ईरान में रूस के हित स्वार्थी हो सकते हैं, लेकिन इससे यह संकेत भी मिलता है कि मॉस्को पश्चिमी देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखने को लेकर चिंतित नहीं है. वह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को नाटो ( North Atlantic Treaty Organization- NATO) के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर खड़ा कर सकता है.
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