Categories: Politics

Ram Mandir & General election 2024 difficult for INDIA alliance to challenge Modi government

देश में फ़िलहाल अलग ही माहौल है. हर जगह भगवान श्रीराम और राम मंदिर की बात हो रही है. ऐसा लग रहा है कि पूरा देश राममय है. इस धार्मिक माहौल में राम के अलावा बाक़ी अन्य मुद्दे जैसे खो गए हैं या हैं ही नहीं. चाहे बात राजनीति की हो या आर्थिक हो..चाहे सामाजिक या सांस्कृतिक विमर्श हो..बिना राम और राम मंदिर के कोई भी चर्चा पूरी नहीं हो रही है. पिछले कुछ दिनों से देश में यही माहौल है और अगले कुछ महीनों तक ऐसा ही रहेगा, इसकी भी भरपूर गुंजाइश है.

ऐसे में इस साल होने वाले आम चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा राम और राम मंदिर ही रहने वाले हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कर कमलों से 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा होनी है. उसके बाद आगामी लोक सभा चुनाव में राजनीतिक और चुनावी माहौल और भी अधिक राममय हो जायेगा, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है.

मोदी सरकार के सामने विपक्ष की चुनौती

केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार का लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा होने जा रहा है. 10 साल का समय हो जायेगा, उसके बावजूद अप्रैल-मई में होने वाले लोक सभा चुनाव में राम मंदिर के अलावा बाक़ी मुद्दे नेपथ्य में रहने वाले हैं. यह भी एक तरह से तय हो गया है. इस माहौल में कांग्रेस की अगुवाई में 28 दलों के विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए मोदी सरकार के सामने चुनौती पेश करना बेहद मुश्किल है. राम मंदिर के सामने विपक्ष के सारे मुद्दे फेल नज़र आ रहे हैं और अगले कुछ दिनों में इस माहौल में कोई बड़ा बदलाव हो सकता है, इसकी भी संभावना बेहद कम है.

राम मंदिर के माहौल में पूरा देश राममय

भगवान श्रीराम और अयोध्या में राम मंदिर लोगों की धार्मिक भावनाओं और आस्था से जुड़े विषय है. लेकिन तीन दशक से भी अधिक समय से भारतीय राजनीति में इनका प्रभाव रहा है. अब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद यह मसला पूरी तरह से भारतीय राजनीति पर हावी हो गया है. फ़िलहाल राम मंदिर को लेकर धार्मिक माहौल तो उफान पर है ही, वर्तमान समय इस मसले के राजनीतिक तौर से उत्कर्ष का भी समय है और इसका व्यापक असर आगामी लोक सभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा.

राम और राम मंदिर से जुड़ी भावनाओं का राजनीतिकरण  कोई नयी बात नहीं है. पिछली सदी में 80 के दशक में ही इस प्रक्रिया में उबाल आना शुरू हो गया था. धार्मिक भावनाओं का धार्मिक उन्माद में तब्दीली ही इसके राजनीतिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण है, जो फ़िलहाल अपने चरमोत्कर्ष पर है. इसके तहत बीजेपी की राजनीति को चमकने का ख़ूब मौक़ा भी मिला है, इससे शायद ही किसी को इंकार हो.

इस मसले को राजनीतिक मोड़ देने का काम भारतीय जनता पार्टी ने ही 80 के दशक में किया था. उसका लाभ भी पार्टी को अतीत में मिलते रहा है. लेकिन अभी उस राजनीतिकरण की प्रक्रिया का सर्वोच्च लाभ बीजेपी को मिलना बाक़ी है, जो शायद इस बार के लोक सभा चुनाव में पूरा होते दिख सकता है.

आम चुनाव 2024 में राम मंदिर सबसे बड़ा मुद्दा

बीजेपी 2014 के लोक सभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करती है. उसे 2019 के लोक सभा चुनाव में उससे भी बड़ी जीत मिलती है. इन दस साल की अवधि में कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों की स्थिति केंद्रीय स्तर की राजनीति में लगातार कमज़ोर होती गयी है. यह भी राजनीतिक वास्तविकता है. कांग्रेस समेत कई ऐसे दल हैं, जिनकी स्थिति इतनी बुरी हो गयी है कि 2024 का चुनाव उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई के रूप में तब्दील हो चुका है. शायद यही सबसे बड़ा कारण था कि पिछले साल जुलाई में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की नींव पड़ती है. इसमें काग़ज़ी तौर पर फ़िलहाल कांग्रेस समेत 28 दल शामिल हैं.

आम चुनाव, 2024 में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की लड़ाई केंद्रीय राजनीति के लिहाज़ से पहले से ही बेहद ताक़तवर बीजेपी और मोदी सरकार से है. कांग्रेस समेत 28 दल एक गठबंधन के तले काग़ज़ी तौर से एक साथ हो गए हैं, लेकिन इस गठबंधन के सामने दो चुनौती है. पहला, अलग-अलग राज्यों में अपने ही सहयोगियों के सीट बँटवारे पर सहमति बनाना. गठबंधन में शामिल दलों के निजी हितों के मद्द-ए-नज़र यह अपने आप में बेहद कठिन काम है. हालाँकि इस आर्टिकल में सीट बँटवारे से जुड़ी चुनौती पर चर्चा नहीं करेंगे.

राम मंदिर के सामने विपक्ष के पास मुद्दों का अकाल

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सामने इससे भी बड़ी एक चुनौती है. वो चुनौती मोदी सरकार और बीजेपी के ख़िलाफ माहौल बनाने और मुद्दे गढ़ने से संबंधित है. सीट बँटवारे पर सहयोगियों के बीच चुनाव से पूर्व सहमति बन भी जाती है, तब भी विपक्षी गठबंधन के लिए मुद्दों के मसले पर चुनाव में अपने पक्ष में माहौल तैयार करना आसान नहीं है. अब राम मंदिर को लेकर देश के आम लोगों में जिस तरह का धार्मिक के साथ ही राजनीतिक माहौल बन गया है, उसको देखते हुए विपक्ष के लिए मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दे तैयार करना आसान नहीं रह गया है.

कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में बीजेपी सफल

राम मंदिर का मसला धार्मिक है, लेकिन बीजेपी ने इसका इस्तेमाल बेहद ही संजीदगी और कुशलता से विपक्ष को घेरने के लिए भी किया है. विपक्षी दलों..ख़ासकर..कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में बीजेपी कामयाब होती दिख रही है. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने से इंकार कर कांग्रेस ने इसे बीजेपी और आरएसएस का समारोह बता दिया. बीजेपी ने इसे ही कांग्रेस के ख़िलाफ मुद्दा बना दिया है.

बीजेपी ने अपनी टीम, पार्टी से जुड़े संगठनों के साथ मिलकर कांग्रेस को राम विरोधी साबित करने में जुटी है और आम लोगों से बातचीत करने पर ऐसा लग भी रहा है कि बीजेपी इस राजनीतिक मंसूबे में बहुत हद तक सफल भी होती दिख रही है. इतना ही नहीं भविष्य में बीजेपी इस मसले को और भुनाएगी. आम चुनाव 2024 में बीजेपी इसे एक बड़ा मुद्दा बनायेगी, यह भी तय है.

कांग्रेस को लेकर बीजेपी की धार्मिक रणनीति

कांग्रेस मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की जितनी भी आलोचना कर रही है, उसका व्यापक असर आम लोगों पर नहीं पड़ रहा है. यह राजनीतिक सच्चाई है. यहाँ आम लोगों में उस तबक़े की बात हो रही है, जो चुनाव के दिन ज़ोर-शोर से अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्रों पर पहुँचते हैं. उस तबक़े में एक बड़ी आबादी या कहें बहुसंख्यक आबादी में बीजेपी इस बात को पहुँचाने में कामयाब हो गयी है कि कांग्रेस की नीति हमेशा से ही भगवान राम या राम मंदिर के ख़िलाफ़ रही है. यह सच्चाई है या नहीं, वो अलग विषय है, लेकिन बीजेपी अपनी रणनीति में कामयाब होती दिख रही है.

बीजेपी को पता है कि कांग्रेस को छोड़कर बाक़ी दल उस स्थिति में नहीं हैं, जिससे उनकी पार्टी को 2024 के चुनाव में कोई ख़तरा है. ऐसा ख़तरा जिससे मोदी सरकार के लगातार तीसरे कार्यकाल पर कोई संकट आ जाए. मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल को लेकर ख़तरा तभी पैदा हो सकता है, जब कांग्रेस के प्रदर्शन में 2019 के मुक़ाबले अभूतपूर्व सुधार हो. बीजेपी का मुख्य ज़ोर ऐसा नहीं होने देने पर ही है.

विपक्षी नेताओं के लिए राजनीतिक मजबूरी

राम मंदिर को लेकर कांग्रेस समेत बाक़ी विपक्षी दल बीजेपी पर राजनीति करने का चाहे कितनी भी आरोप लगा रहे हों, वास्तविकता यही है कि बीजेपी ने तमाम विपक्षी दलों को मजबूर कर दिया है कि उनके शीर्ष नेता 22 जनवरी को अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय होते दिखेंगे.

तमाम विपक्षी दलों के सर्वेसर्वा नेताओं ने अलग-अलग कारण बताकर 22 जनवरी को अयोध्या आने से इंकार कर दिया. हालांकि जैसे-जैसे प्राण प्रतिष्ठा समारोह का दिन नज़दीक आते गया, देश के आम लोगों के बीच माहौल को देखते हुए इन दलों के तमाम नेताओं को मजबूर होना पड़ गया कि 22 जनवरी को वे कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी धार्मिक गतिविधियों में शामिल होते हुए दिखें.

यह एक तरह से बीजेपी की उस रणनीति की ही सफलता मानी जायेगी, जिसमें राम मंदिर कार्यक्रम में नहीं आने पर उन नेताओं को आम लोगों के बीच राम विरोधी या धर्म विरोधी घोषित करने की कोशिश की गयी. भगवान राम और राम मंदिर मुद्दे का ही यह प्रभाव है कि तमाम विपक्षी नेताओं के लिए यह राजनीतिक मजबूरी बन गयी है कि उस दिन वे अपनी छवि को धार्मिकता के रंग में सरोबार दिखाएं.

राजनीति में धार्मिकता और बीजेपी को फ़ाइदा

धार्मिक मसलों, धार्मिक भावनाओं और आम लोगों की आस्था को लेकर राजनीतिक प्रयोग का अनोखा और सफल उदाहरण राम मंदिर है. इस राजनीतिक प्रयोग को बीजेपी ने अंजाम दिया है और राजनीतिक सफलता भी पायी है. यह वास्तविकता है. यह अच्छा है या बुरा है, इसकी निंदा की जानी चाहिए या सराहना, यह भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कितना उचित है या अनुचित, ये सारे पहलू अलग से चर्चा के विषय हो सकते हैं.

इन सबसे परे जो वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें यह सच्चाई है कि बीजेपी को इस राजनीतिक प्रयोग का लाभ 80 के दशक ही मिलने लगा था. इसी का नतीजा है कि 1984 के लोक सभा चुनाव जहाँ बीजेपी को सिर्फ़ दो सीट पर जीत मिली, 2019 आते-आते बीजेपी के सीटों की संख्या 303 तक पहुँच जाती है. ऐसा होने में और भी कारकों की भूमिका रही है, लेकिन राम मंदिर को लेकर बीजेपी के राजनीतिक प्रयोग का इसमें सबसे प्रभावी भूमिका रही है.

400 का आँकड़ा पार करने की रणनीति पर बीजेपी

अब जब राम मंदिर बन गया है, तो बीजेपी इस राजनीतिक प्रयोग को आगे ले जाना चाहती है. इस प्रयोग के दायरे को बीजेपी ने व्यापक कर दिया है और इसके दम पर आगामी लोक सभा चुनाव में बीजेपी चार सौ का आँकड़ा पार करने का भी दंभ भर रही है. कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों को इस बात का सलीके से एहसास है कि राममंदिर के सामने उनके तमाम मुद्दों का असर फीका है. कम से कम राम मंदिर को लेकिर जिस तरह का माहौल अभी देश में, देश के आम लोगों में है, उसको देखकर ऐसा ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

देश में राम मंदिर के सामने बाक़ी मुद्दे हुए गौण

तमाम बीजेपी शासित राज्यों में तमाम परेशानियाँ मौजूद हैं. केंद्र में दस साल से मोदी सरकार है. ऐसा नहीं है कि देश के सामने समस्याएं नहीं हैं. चुनाव भी सिर पर खड़ा है. लेकिन आम लोगों में न तो बीजेपी और न ही मोदी सरकार से कोई सवाल पूछने को लेकर ख़ास उत्सुकता दिख रही है. राम मंदिर ने बाक़ी सारे मुद्दों, परेशानियों और सवालों को पर्दे के पीछे कर दिया है. इस काम को आम लोगों ने अजाम नहीं दिया है. एक लंबी प्रक्रिया और प्रयोग के माध्यम से बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों ने इस तरह का माहौल तैयार कर दिया है.

स्थिति ऐसी हो गयी है कि आम लोगों, घर-परिवार, नाते-रिश्तेदार, दोस्तों के बीच में कुछ लोग आपस में भी मोदी सरकार को लेकर सवाल उठाते हैं, तो ऐसे लोगों को देश विरोधी और धर्म विरोधी घोषित कर देने में आम लोग ही तनिक भी देर नहीं कर रहे हैं. बीजेपी ने जिस राजनीतिक प्रयोग की शुरूआत पिछली सदी के 80 के दशक में की थी, उसका ही यह प्रतिफल है.

आम चुनाव में विपक्ष के मुद्दे टिक नहीं पाएंगे

ऐसे माहौल में आम चुनाव 2024 में विपक्ष के मुद्दे कहीं नहीं टिक पाएंगे, इतना तय है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के साथ ही बाक़ी दलों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दे गढ़ने, बीजेपी के ख़िलाफ़ नैरेटिव तैयार करने की कोशिश नहीं की है. संसद से लेकर सड़क तक अडाणी का भी मुद्दा उठाया है. चंद उद्योगपतियों को फ़ाइदा पहुँचाने का भी आरोप तमाम विपक्षी नेता मोदी सरकार पर लगाते रहे हैं. बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, संवैधानिक संस्थाओं को अपने मुताबिक़ ढालने या बनाने जैसे विषयों को लेकर भी विपक्षी दल बीच-बीच में मोदी सरकार पर हमलावर होते दिखे हैं.

गंभीरता से मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं

हालाँकि पिछले दस साल में कभी भी विपक्ष की ओर से कोई भी बड़ा नेता इन मुद्दों पर गाँव, छोटे शहरों से लेकर महानगरों तक निरंतर संघर्ष करता हुआ नहीं दिखा है. कांग्रेस के पू्र्व अध्यक्ष और पार्टी के वरिष्ठ नेत गांधी बीच-बीच में मोदी सरकार को घेरने और आलोचना करने के लिए आक्रामक रुख़ दिखाते हैं. अभी भी वे भारत जोड़ो न्याय यात्रा के माध्यम से मोदी सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के प्रयास में जुटे हैं. इन सबके बावजूद व्यापक स्तर पर पूरे देश में आम लोगों के बीच मोदी सरकार और बीजेपी के ख़िलाफ़ कोई बड़ा मुद्दा खड़ा करने में विपक्ष विफल ही कहा जाएगा.

बीजेपी की रणनीति के आगे विपक्षी प्रयास बेअसर

जब-जब ऐसी कोशिश में थोड़ी तेज़ी आती है, बीजेपी की रणनीति के आगे तमाम विपक्षी प्रयास महत्वहीन और बेअसर साबित होता दिखता है. बीजेपी के नेता, कार्यकर्ता और अब तो घर बैठे कार्यकर्ता बन चुके आम मतदाता ..मोदी सरकार के ख़िलाफ़ हर मामले, समस्याओं, सवालों और मुद्दों को घुमा-फिराकर धर्म, हिन्दु-मुस्लिम, देशद्रोह के जाल में लपेटकर महत्वहीन बनाने के हुनर में निपुणता हासिल कर चुके हैं. तमाम विपक्ष को इस वास्तविकता को समझना होगा. जब राजनीति में धर्म हावी हो जाता है, तो आम लोग नागरिक होने के महत्व को गौण मान लेते हैं और धार्मिक होने के महत्व को राजनीतिक प्रक्रिया में भी प्रमुखता से तरजीह देने लगते हैं. फ़िलहाल देश में ऐसा ही माहौल बन चुका है या धीरे-धीरे बनाया गया है.

राजनीतिक और सरकारी जवाबदेही पर सवाल नहीं

कुल मिलाकर राम मंदिर की वज्ह से आम लोगों की मानसिकता इस रूप में विकसित होती जा रही है कि देश में मौजूद समस्याओं और परेशानियों के लिए राजनीतिक और सरकारी जवाबदेही को लेकर चुनाव में भी कोई सवाल सरकार और सत्ताधारी दल से पूछने की संभावना बेहद कम हो गयी है. बीजेपी के राजनीतिक प्रयोग की वज्ह से आम मतदाता पार्टी कार्यकर्ता में बदल चुके हैं, पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है. नागरिकता और नागरिक अधिकारों की जगह धार्मिक भावनाओं का महत्व लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़ गया है. ऐसे में विपक्ष के लिए इस बार के लोक सभा चुनाव में मोदी सरकार के सामने मज़बूत चुनौती पेश करना और भी कठिन हो गया है.

राम मंदिर के आगे सब सवाल पर्दे के पीछे

राम मंदिर से बने माहौल के बीच आम लोग इस बात को समझने को  तैयार नहीं हैं कि धार्मिकता, धार्मिक भावनाओं का अपना महत्व है और राजनीति में सवाल और मुद्दों पर चर्चा का अपना महत्व है. धार्मिक भावना को महत्व का मतलब धार्मिक कट्टरता से कतई नहीं है. एक ही धर्म में अलग-अलग मान्यताओं को महत्व देने की वज्ह से ही सदियों से सनातन धर्म अक्षुण्ण है. इस बात पर भी चर्चा के लिए कोई तैयार नहीं दिखता है. अब तो सीधे सनातन विरोधी का तमगा देने के लिए आम लोगों के बीच ही एक बड़ी फ़ौज तैयार कर दी गयी है. राजनीति में धर्म के हावी होने की प्रक्रिया में नुक़सान सिर्फ़ और सिर्फ़ आम लोगों का ही होता है, इस बात पर चर्चा की गुंजाइश भी धीरे-धीरे ख़त्म होने के कगार पर है.

हालात ऐसे बन चुके हैं या कहें कि बीजेपी की रणनीति को इस रूप में कामयाबी मिलती दिख रही है कि अब आम लोग सवाल सत्ताधारी दल से नहीं बल्कि विपक्ष से ही पूछने को लेकर उतावले दिखते हैं. देश की सारी समस्याओं, परेशानियों के लिए विपक्षी दलों को ज़िम्मेदार ठहराने की भी कोशिश करने वाला एक बड़ा तबक़ा हमेशा तैयार दिखता है. ऐसे में इतना तो तय है कि आम चुनाव, 2024 में राम मंदिर के सामने बाक़ी मुद्दों का महत्व बेहद कम होगा और इसका सीधा लाभ बीजेपी को ही मिलेगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

Source link

jaghit

Share
Published by
jaghit

Recent Posts

'मुख्यमंत्री कोविड-19 बाल सेवा योजना' के लिए नहीं है बजट? अब मंत्री नरेंद्र पटेल ने किया ये दावा

<p style="text-align: justify;"><strong>Madhya Pradesh News Today:</strong> भारत सहित पूरी दुनिया ने 3 साल वैश्विक महामारी…

3 months ago

Inside Hina Khan’s Pre-Birthday Celebrations With Rocky Jaiswal And Mother In Goa

Hina Khan’s birthday is on October 2. (Photo Credits: Instagram)From a stunning view of her…

3 months ago

Swiggy IPO Gets Sebi Approval: All You Need to Know About Rs 11,000-Crore Issue

Food and grocery delivery major Swiggy has received markets regulator Sebi’s clearance to launch its…

3 months ago

‘Imprints of Make in India visible everywhere’: PM Modi lauds 10 years of flagship initiative | India News

NEW DELHI: Prime Minister Narendra Modi on Wednesday lauded the efforts of each and every…

3 months ago

Waqf Amendment Bill JPC 1 Crore Emails Nishikant Dubey VHP Vinod Bansal Said it Email Jihad | वक्फ बिल पर 1 करोड़ से ज्यादा सुझाव: VHP बोली

Waqf Amendment Bill Email: वक्फ संशोधन बिल पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को सुझाव के लिए…

3 months ago

Georgia Meloni and Elon Musk date truth behind the viral photos

Meloni And Musk Viral Photos : दुनिया के सबसे अमीर शख्स एलन मस्क ज्यादातर किसी…

3 months ago