साल 2015 में चुनाव आयोग के कामकाज में पारदर्शिता लाने को लेकर कई जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं. इन याचिकाओं पर साल 2023 के मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा गया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए.
फैसले में जस्टिस के.एम. जोसेफ़ की संवैधानिक पीठ ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) और चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा बनाई गई समिति की सलाह के आधार पर की जानी चाहिए. इस समिति में देश के प्रधानमंत्री सहित विपक्षी दलों के सबसे बड़े नेता या लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे. इसके अलावा फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्ति को लेकर एक क़ानून बनाने के लिए भी कहा था.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 10 अगस्त 2023 को हुए मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार की तरफ से राज्यसभा में एक बिल पेश किया गया. जिस पर राज्यसभा में जमकर हंगामा देखने को मिला. इस बिल का नाम था मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023.
विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक असंवैधानिक और मनमाना है. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार इस विधेयक के जरिए चुनाव आयोग को अपनी कठपुतली बनाना चाहती है.
आज से शुरू होगा संसद का विशेष सत्र
आज से यानी 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र शुरू होने जा रहा है. यह सत्र शुक्रवार के 22 सितंबर तक चलेगा. इस विशेष सत्र में किस-किस विधेयक पर चर्चा होगी इसकी जानकारी भी लोकसभा और राज्यसभा के जारी बुलेटिन में दे दी गई है.
बुलेटिन के अनुसार इस विशेष सत्र में राज्यसभा में तीन बिल पर और लोकसभा में दो बिल पर चर्चा होगी. राज्यसभा में जिस तीन विधेयक पर चर्चा होने वाली है उनमें चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाला भी एक बिल है.
किन विधेयकों पर होगी चर्चा?
ऐसे में इस खबर में जानते हैं कि क्या संसद में पारित होगा विवादित चुनाव आयोग की नियुक्ति से जुड़ा बिल और आखिर इस पर बवाल क्यों मचा है?
सबसे पहले जानते हैं कि ये विधेयक है क्या?
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के तहत देश के निर्वाचन आयुक्त और मुख्य निर्वाचन आयुक्तों का चयन एक कमिटी की सिफारिश पर की जाएगी. कमिटी की सिफारिश के बाद भी चयनित चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्तों को पद पर बैठाए जाने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति लेनी होगी.
चुनाव आयुक्तों के चयन की सिफारिश के लिए जो कमिटी बनाई जाएगी उसकी अध्यक्षता खुद देश के प्रधानमंत्री करेंगे. और इस कमेटी के सदस्यों में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे. वहीं केंद्रीय मंत्री का चयन भी प्रधानमंत्री ही करेंगे.
इन दोनों पदों के उम्मीदवारों के नाम की एक लिस्ट तैयार की जाएगी. इस लिस्ट को कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनाई गई एक सर्च कमिटी तैयार करेगी और सिलेक्शन कमिटी को भेजेगी. जिस सर्च कमेटी को उम्मीदवारों की लिस्ट बनाने की जिम्मेदारी दी गई है उसमें भारत सरकार के सेक्रेटरी रैंक के दो सदस्य होंगे.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति छह साल के लिए की जाएगी. इसके अलावा यह नियुक्ति 65 साल की आयु तक के लिए होगी और 65 साल के बाद उन्हें इस पद के लिए नियुक्ति नहीं मिलेगी.
विधेयक के अनुसार चुने गए मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 324 के खंड (5) के तहत ही हटाया जा सकता है. संविधान के इसी अनुच्छेद में बताया गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त को पद से हटाने के लिए उसी नियम का पालन करना होगा जिसका सर्वोच्च न्यायालय कोर्ट के जज को हटाने के लिए करती है. इसके अलावा बिल पास होने के बाद चुनाव आयोग कोई भी फैसला सर्वसम्मति से लेंगे और अगर फैसले के दौरान मतभेद की स्थिति बनती है तो बहुमत का फैसला ही अंतिम फैसला होगा.
अब तक इन पदों की नियुक्ति की प्रक्रिया के बारे में भी जान लीजिए
चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी देश में शांतिपूर्ण चुनाव करवाने की है. यह एक संवैधानिक निकाय है जिसके बारे में विस्तार के संविधान के अनुच्छेद 324 में बताया गया है.
वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की जो प्रक्रिया है उसके अनुसार इन पदों पर नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है. संविधान के अनुच्छेद 324 (2) में में इन पदों की नियुक्ति के लिए कानून बनाने की भी बात कही गई है. अब तक राष्ट्रपति ही मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करते हैं.
इस बिल पर विपक्ष क्यों उठा रहे हैं सवाल
केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए इस बिल पर पिछले मॉनसून सत्र में विपक्षों की तरफ से जमकर हंगामा किया गया. विपक्ष का कहना है कि मोदी सरकार इस विधेयक के जरिए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पूरी तरह पलटने की कोशिश कर रही है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया था उसमें उन्होंने चयन करने वाली कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जगह दी थी.
क्या कहते हैं विश्लेषक
पॉलिटिक्ल साइंस के प्रोफेसर अशोक मिश्र कहते हैं कि ये जो विधेयक लाया गया है उसमें कमेटी में शक्ति का संतुलन नहीं रखा गया है. आसान भाषा में समझे तो इस कमेटी के ज्यादातर सदस्य केंद्र सरकार की होगी. जिसके कारण विपक्ष के नेता वोटिंग प्रक्रिया के शुरू होने से पहले ही अल्पमत में चले जाएंगे और कोई भी फैसला सरकार के पक्ष में हो जाएगा. अगर इन पदों की नियुक्ति के दौरान प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री के किसी एक नाम पर सहमत हो जाते हैं तो अकेला विपक्षी नेता आपत्ति जताकर भी कुछ नहीं कर पाएगा.
अशोक मिश्र आगे कहते हैं इस विधेयक को लेकर बवाल इसलिए मचा हुआ है क्योंकि विपक्ष का मानना है कि इस बिल के पास होने से चुनाव आयोग की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा. उनकी नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया ही एकतरफा हो जाएगी तो इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता भी प्रभावित होगी.
विपक्ष की क्या है मांग
विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार को सिलेक्शन कमिटी में शामिल होने वाले सदस्यों की समीक्षा कर इसे ज्यादा संतुलित करने की जरूरत है ताकि निष्पक्ष निर्णय की प्रक्रिया पूरी की जा सके. विपक्ष की मांग है कि इस सिलेक्शन कमिटी में विपक्ष को और मजबूत करना चाहिए इसके साथ ही सर्च कमेटी में भी जजों या कानूनी जानकारों को जगह मिलनी चाहिए.
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