Roodade Safar Book Review: कथाकार पंकज सुबीर (Pankaj Subeer) का हालिया उपन्यास ‘रुदादे सफर’ (Roodade Safar) कुछ मायनों में अनोखा है. दरअसल, यह सफर वृत्तांत है एक डॉक्टर बाप-बेटी के रिश्तों का जो एक दूसरे के साथ, एक दूसरे के लिए जिंदगी बिताना चाहते हैं, मगर मिलना-बिछड़ना जिंदगी है सो इसी मिलने-बिछड़ने को पंकज ने अपने कोमल अंदाज में ऐसे पिरोया है कि पहले पन्ने से आखिर तक पढ़ने के बाद भी अहसास ही नहीं होता कि दो सौ से ज्यादा पन्नों का उपन्यास खत्म भी हो गया.
यह कहानी भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज से शुरू होकर उसी में ही खत्म होती है. एक परिवार है, जिसमें डॉक्टर पिता, बेटी और पत्नी हैं. ये डाक्टर भी ऐसे कि जिनको पैसा कमाना पसंद नहीं. जैसा कि ऐसे में होता है कि ऐसे पति, पत्नी को कम पसंद आते हैं, पति-पत्नी की खटर-पटर के बीच बाप-बेटी के रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं और बेटी भी अपने पिता जैसा ही बनती है. ऐसा डॉक्टर जो डॉक्टर पढ़ाए मगर पैसा न कमाए. पिता-पुत्री के एक दूसरे के प्रति स्नेह, एक दूसरे की पसंद और प्रगाढ़ता के बीच नए तरीके से उपन्यास में पंकज ने प्रकाश डाला है.
…और ऐसा अहसास कराती है उपन्यास
लंबे समय बाद कोई ऐसा उपन्यास आया है जिसमें बाप-बेटी के रिश्तों को इतनी कोमलता से अहसास कराया गया है. लेखक ने लिखा भी है कि पिता पुत्री का रिश्ता ठीक तरीके से वैसा शब्दों में नहीं बांधा जा सकता जैसा ये होता है. ये तो अव्यक्त रह कर खामोशी से गुजर जाता है. केवल वही दो इसे महसूस कर सकते हैं जो इस रिश्ते से बंधे होते है यानी कि पिता-पुत्री. मगर, पिता पुत्री के रिश्ते को आगे बढ़ाते-बढ़ाते कहानी में आए उस पहलू को देखकर पाठक हैरानी में पड़ जाते हैं जब डॉक्टर पति को जीवनभर खरी-खरी सुनाने वाली उनकी पत्नी आखिरी दिनों में अपनी बेटी के सामने यह राज खोलती है कि वो क्यों उसके पिता को ऐसा बोल कर क्या कराना चाहती थी?
‘पात्र कम लेकिन रोचक’
उपन्यास में पात्र कम हैं मगर जो भी हैं, उत्साह और रोचकता से भरे हुए हैं. पात्र चित्रण में पंकज को कोई पीछे नहीं छोड़ सकता. महिलाओं पर कहानियां लिखने में पंकज को महारत हासिल है. यह उनका पहला उपन्यास है जो पुरी तरह महिला केंद्रित है. एक काबिल महिला डॉक्टर के अकेलेपन को गजलों की लाइनों के बीच ऐसा बांधा है कि बहुत ज्यादा कुछ कहना ही नहीं पड़ता और यही इस उपन्यास की बड़ी खासियत है कि बहुत कुछ जो लिखा नहीं गया वो भी पाठक पढ़ लेता है.
देहदान के संकल्प को लेकर जागरूकता की कोशिश
पंकज ने महिला डॉक्टर के बहाने मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी डिपार्टमेंट और डेड बॉडी ‘जिसे कैडेवर कहते हैं’ की कमी और देहदान के संकल्प को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिश भी की है, जो आमतौर पर अब उपन्यासों में ऐसा देखने को नहीं मिलता. यदि पंकज के पुराने उपन्यासों को देखें तो ‘रूदादे सफर’ नरम-मुलायम, नाजुक सा उपन्यास है जिसे पंकज ने पटरी बदलते हुए जल्दी में लिख दिया है. मगर, पंकज की पहचान तो शासन तंत्र और धर्म तंत्र के खिलाफ खड़े होने वाले उपन्यासकार की है और उनसे वैसे ही उपन्यास की उम्मीद उनके पाठक हमेशा करते हैं. फिर भी रिश्तों की भावुकता से भरे ‘रुदादे सफर’ के लिए लेखक को बधाई.
बता दें कि रुदादे सफर उपन्यास को शिवना प्रकाशन ने प्रकाशित किया है, जिसकी कीमत 300 रुपये है.
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