पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने वहां के एक टेलीविजन चैनल जियो टीवी पर दिए इंटव्यू में कहा कि उनका देश जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के स्टैंड से सहमत है. हालांकि, हकीकत ऐसा नहीं है, इस मामले पर जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी ने चुप्पी साध रखी है तो वहीं दूसरी तरफ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने खुला एलान किया है कि वे अगर सत्ता में आती है तो अनुच्छेद 370 को घाटी में दोबारा बहाल किया जाएगा.
दरअसल, ये पूरा मैटर भारत का पूरी तरह से अंदरूनी मामला है और अगर इसमें पाकिस्तान कुछ कहता है तो इसके मायने ये होगा कि पाकिस्तान यहां पर दखल दे रहा है. पाकिस्तान का इससे कुछ भी लेना-देना नहीं है. इसमें पाकिस्तान की तरफ से बयान देकर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का इस्तेमाल करना, जिससे कि वे अपने दावे की सही साबित करे, ये बिल्कुल भी ठीक नहीं है.
इतिहास की अगर बात करें तो जब अनुच्छेद 370 लागू किया गया, उसके बाद वहां के लोगों को कुछ दिनों तक जरूर ये लगा है कि हम सैपरेट हैं, अलग कानून है. लेकिन जब भारत का अपना संविधान बन गया, उसके बाद अनुच्छेद 370 को रखने का कोई मतलब नहीं था. ये अलगाववाद की भावना देती थी.
अनुच्छेद 370 से अलगाव की भावना
आज जब भारत में हर किसी की समान अधिकार है, समान अवसर है, सभी को संवैधानिक अधिकार के तहत सुरक्षा है तो फिर अनुच्छेद 370 का देश के लिए कोई मायने नहीं था. मैंने खुद जब 1996 का चुनाव कराने का दौरान उस प्रक्रिया का हिस्सा बना, मेरी इलेक्शन ड्यूटी थी, उस समय हमने देखा और महसूस किया कि जो अलगाव की भावना है, वो न होकर जोड़ने की भावना होनी चाहिए. 370 अलगाव की भावना को बढ़ता है क्योंकि ये केवल जम्मू कश्मीर में लागू था. इसका कोई भी फायदा नहीं था.
जहां तक कांग्रेस के अनुच्छेद 370 पर ऑफिशियल स्टैंड की बात करें तो उनका ऐसा रुख नहीं है. जम्मू कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी को इसको लेकर भले ही जो भी स्टैंड हो, लेकिन वो सबकुछ दबाव में किया गया था और अस्थाई प्रावधान था.
ऐसे में पाकिस्तान की ओर से इस विषय पर बोलना बिल्कुल गैर-वाजिब है. अपने घरेलू मामले में चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर कोई अन्य दल, वे बिल्कुल इस पर चर्चा कर सकती है. लेकिन, जब ऐसा बयान किसी देश के रक्षा मंत्री का आता है, तो इसका मतलब यही माना जाएगा कि उनकी नीयत ठीक नहीं है.
नकली भावना भड़काने की कोशिश
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को लेकर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बयान घाटी में नकली भावना भड़काने का प्रयास है. लेकिन, इसका कुछ भी असर नहीं होगा. लोग जमकर घाटी के चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं. जब हम 1996 में चुनाव में गए थे तो 35 से 36 फीसदी लोगों ने हिस्सा लिया था. अब ये बढ़कर 58% से ज्यादा हो चुका है. 55 फीसदी से ज्यादा वोटिंग का मतलब ये है कि भारत के राष्ट्रीय औसत मतदान के बराबर है.
सत्ता में लोगों की भागीदारी है और लोगों को ये बात पता है कि भारत से बढ़िया संविधान नहीं है. भारत के साथ चलने में फायदा है. अब ये कोई मुद्दा नहीं रह गया है. ऐसे में घाटी में अनुच्छेद 370 को मुद्दा बनाने से कोई फायदा नहीं किसी को मिलने जा रहा है, बजाय भावना भड़काने के.
दरअसल, कश्मीर की अपनी असेंबली थी. कश्मीर में महाराज थे और हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही वहां पर मिलकर रहते थे. जवाहर लाल नेहरू ने वहां के लोगों के फील ऑफ फ्रीडम के लिए अनुच्छेद 370 दिया, ताकि उन लोगों को लगे कि कश्मीर एक देश की तरह है और उसके घरेलू मामलों में कम से कम दखल है. लेकिन ये सब एक अस्थाई प्रावधान था.
घबराकर हो रही बयानबाजी
महबूबा मुफ्ती ने एक बयान दिया था कि अनुच्छेद 370 हट जाने के बाद तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं रहेगा, वैसा घाटी में कुछ नहीं होने वाला है. कश्मीर के लोग भारतीय हैं. भारत से जुड़े हैं और पहले जितना तिरंगा उठा रहे थे उसे ज्यादा तिरंगा उठा रहे हैं. आज कश्मीर के गांव-गांव में तिरंगा फहराया जा रहा है. चुनाव का समीकरण बदल सकता है, इसलिए घबराकर इस तरह का बयान दिया जा रहा है.
जहां अनुच्छेद 370 की दोबारा बहाली का सवाल है तो देखिए अंग्रेज 1947 में था, लेकिन अगर कोई ये कहेगा कि विदेशी शासन कभी नहीं आएगा तो ऐसा नहीं हो सकता है. एक बार किसी को टीवी रोग होने और इम्युनिटी कमजोर होने के बाद ये संभावना रहती है कि दोबारा ये बीमारी हो सकती है. यानी कहने का मतलब ये है कि एक बार देश के गुलाम होने के बाद कोई गारंटी नहीं है कि गुलाम न हो. इसी तरह से 370 खत्म हो गया है, लेकिन ये कोई नहीं कह सकता है कि दोबारा लागू नहीं हो सकता है. इसलिए जनता को सतर्क रहना है.
पाकिस्तान दरअसल इसलिए चाहता है कि जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 रहे क्योंकि वे ये चाहता है कि घाटी अशांत बनी रहे. 370 से कश्मीर के लोगों में ये भावना आती है कि हम भारत से अलग है, हमारा अपना संविधान है. ये अलगाववाद को जन्म देता है. पाकिस्तान को अलगाववाद का समर्थक रहा ही है. ऐसे में उसका जो लक्ष्य भारत को तोड़ना है, वो अनुच्छेद 370 से आसान होगा. जितने भी जुर्म होते रहे वो सब अनुच्छेद 370 की आड़ में होता रहा. लेकिन मैं खुद सिविल सर्वेंट रहा हूं और काफी करीब से कश्मीर को देखा है. अनुच्छेद 370 के चलते इतने पंडितों की हत्या और अत्याचार किया गया, लेकिन एक एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई थी.
कभी कभी बीमारी को दूर करने के लिए सर्जरी करना पड़ता है. बीमारी में जितना खून बहता है, उससे कहीं ज्यादा सर्जरी में बहता है. कहने का मतलब ये है कि 56 फीसदी आतंकी घटनाओं में कमी आयी है. चुनाव होने जा रहा है और लोग मतदान की प्रक्रिया यानी मुख्य धारा में हिस्सा ले रहे हैं. इसका नतीजे धीरे-धीरे सामने आएगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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