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Know About Nepal Political History And Power Struggles Who Did First Election In Country

Nepal Political History: पड़ोसी देश नेपाल में चुनाव की तारीख नजदीक आ गई है. यहां एक ही चरण में पूरे देश में 20 नवंबर को मतदान किया जाएगा. इस बार नेपाल में चुनावी मुद्दा राजनीतिक अस्थिरता को माना जा रहा है. राजनेताओं की ओर से राजनीतिक स्थिरता को कायम रखने के वादे भी किए जा रहे हैं. इसका कारण ये भी रहा कि यहां किसी भी प्रधानमंत्री ने अपना 5 साल कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है.

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता को समझने के लिए इसको दो हिस्सों में बांटना होगा. एक समय वो जब यहां राजतंत्र हुआ करता था और दूसरा समय वो जब लोकतंत्र आया. साल 1923 में ब्रिटेन से हुई संधि के कारण नेपाल को संप्रभुता तो मिल गई, लेकिन भारत की आजादी के प्रभाव में नेपाल में भी लोकतांत्रिक आंदोलन शुरू हो गए. नेपाल की कांग्रेस पार्टी ने इन आंदोलनों को तेज किया. साल 1951 में राणाओं की सत्ता खत्म हो गई. राजा त्रिभुवन को संवैधानिक प्रमुख बना दिया गया.

साल 1959 महत्वपूर्ण साबित हुआ

नेपाल की राजनीति में साल 1959 एक महत्वपूर्ण साल साबित हुआ. इसी साल नेपाल ने अपना लोकतांत्रिक संविधान बनाया और संसदीय चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया. इसके बाद फिर एक नया मोड़ आया और इसके अगले ही साल यानि 1960 में राजा महेंद्र ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और संसद भंग कर दी. फिर उन्होंने साल 1962 में बुनियादी लोकतंत्र के नाम पर किसी भी पार्टी के सहयोग के बिना राष्ट्रपंचायत का गठन किया. राजा ने खुद ही मंत्रिमंडल चुना. इसके बाद साल 1972 में उनकी मौत के बाद राजा बीरेंद्र को इसकी गद्दी सौंप दी गई.

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संवैधानिक सुधार की मांग

साल 1980 के दशक में संवैधानिक सुधार की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी. राजा नेशनल असेंबली के लिए सीधे चुनाव पर सहमत तो हो गए, लेकिन राजनीतिक दलों के गठन की इजाजत नहीं दी. साल 1985 में कांग्रेस पार्टी ने फिर आंदोलन शुरू कर दिया. इसके बाद लोकतंत्र के लिए मार्ग प्रशस्त करते हुए, तत्कालीन राजा बीरेंद्र ने संवैधानिक सुधारों को स्वीकार किया और राज्य के प्रमुख के रूप में राजा के साथ एक बहुदलीय संसद की स्थापना की.

मई 1991 में, नेपाल ने अपना पहला संसदीय चुनाव आयोजित किया. इसके तीन साल बाद ही साल 1994 में कोइराला सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया. नए चुनावों में पहली बारकम्युनिस्ट सरकार का गठन हुआ मगर इस सरकार को अगले ही साल भंग कर दिया गया. फरवरी 1996 में माओवादी पार्टियों ने राजशाही और चुनी हुई सरकार के खिलाफ जनयुद्ध की घोषणा की. साल 1999 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और कृष्ण प्रसाद भट्टराई प्रधानमंत्री बने पर अगले ही साल पार्टी में विद्रोह के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा और गिरिजा प्रसाद कोइराला चौथी बार प्रधानमंत्री बनाए गए.

नेपाल के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी

1 जून 2001, नेपाल के इतिहास का सबसे त्रासदपूर्ण दिन साबित हुआ, जब राजा बीरेंद्र और रानी ऐश्वर्या समेत राजपरिवार के कई सदस्यों की हत्याकर कर दी गई. बीरेंद्र की मौत के बाद नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विरोधी उनके भाई राजकुमार ज्ञानेंद्र राजा बने. उनके राजा बनने के बाद से ही अचानक नेपाल के माओ विद्रोहियों की गतिविधियां तेज हो गईं. वे नेपाल के कई हिस्सों पर अपना कब्जा करने में कामयाब हुए.

मई 2002 में राजा ज्ञानेंद्र ने संसद भंग कर इमरजेंसी लगा दी. कांग्रेस पार्टी ने देउबा को पार्टी से बाहर कर दिया. देउबा अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने लगे. 1 फरवरी 2005 को राजा ज्ञानेंद्र ने देउबा को बर्खास्तकर सारी कार्यकारी शक्तियां अपने हाथों में ले लीं. नेपाल में मीडिया और संचार साधनों पर राजा का कब्जा हो गया.

राजा ज्ञानेंद्र को त्यागनी पड़ी सत्ता

इसके बाद राजा ज्ञानेंद्र ने कुछ समय के लिए चुनी हुई सरकार का पालन किया और फिर निरंकुश सत्ता हासिल करने के लिए निर्वाचित संसद को भंग कर दिया. अप्रैल 2006 में, काठमांडू में सबसे अधिक ऊर्जा केंद्रित करने वाले लोकतांत्रिक दलों ने संयुक्त रूप से एक और जन आंदोलन शुरू किया गया, जिसके कारण 19 दिनों का कर्फ्यू लगा. आखिरकार, राजा ज्ञानेंद्र ने अपनी सत्ता त्याग दी और संसद को बहाल कर दिया.

21 नवंबर,  2006 को  प्रधान मंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला और माओवादी अध्यक्ष प्रचंड ने व्यापक शांति समझौते (सीपीए) 2006 पर हस्ताक्षर किए, जो देश और लोगों की प्रगति के लिए लोकतंत्र और शांति के लिए प्रतिबद्ध था. 10 अप्रैल, 2008 को एक संविधान सभा का चुनाव हुआ. 28 मई, 2008 को नवनिर्वाचित संविधान सभा ने 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म करते हुए नेपाल को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया.

मगर मतभेदों की वजह से संविधान सभा नया संविधान नहीं बना और कार्यकाल का कई बार विस्तार करना पड़ा. आखिरकार साल 2015 में एक संविधान को स्वीकृति मिल पाई, लेकिन नेपाल में लोकतंत्र बहाल तो हो गया पर उसमें लगातार अस्थिरता बनी रही. तब से लेकर अब तक 10 अलग-अलग सरकारें नेपाल में शासन कर चुकी हैं.

ये भी पढ़ें: Nepal General Elections: नेपाल में कौन सी पार्टी किसे देगी टक्कर, इस बार क्या है चुनावी मुद्दा… जानें पड़ोसी देश में कितानी गरमाई सियासत

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jaghit

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