Indian Economy: आर्थिक मोर्चे पर भारत दुनिया की एक बड़ी ताकत बन चुका है और आगे की राह और भी ज्यादा उज्ज्वल है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में ऐसा कोई भी मंच नहीं है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर सुनहरी तस्वीर पेश नहीं की हो.
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम यानी विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने भी कहा है कि भारत विश्व व्यवस्था में एक चमकता हुआ सितारा है. दुनिया में भारत का बढ़ता आर्थिक रुतबा फोरम की ओर से आए बयान के पीछे असली वजह है. इसके अलावा भविष्य में अपार संभावनाओं को देखते हुए हर अंतरराष्ट्रीय मंच और बड़े-से बड़े अर्थशास्त्री भी भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर क़सीदे गढ़ने में मशग़ूल हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत है ‘ब्राइट स्पॉट’
भारत कितनी बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है या फिर आने वाले वक्त में हमारी अर्थव्यवस्था किस ऊंचाई तक पहुंचने वाली है, ये समझने से पहले जान लेते हैं कि वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की ओर से भारत को लेकर क्या कहा गया है. स्विट्ज़रलैंड के दावोस में इस साल विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वार्षिक बैठक 16 से 20 जनवरी के बीच हुई. समापन भाषण में WEF के संस्थापक और कार्यकारी चेयरमैन क्लॉस श्वाब (Klaus Schwab) ने ग्लोबल जियो इकॉनोमिक्स और जियो पॉलिटिकल क्राइसिस के बीच भारत को ब्राइट स्पॉट (bright spot) बताया. उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर भारत की निर्णायक कार्रवाई, ग्लोबल हेल्थकेयर इकोसिस्टम में योगदान, महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास के लिए आर्थिक मॉडल पर ध्यान केंद्रित करने और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर भारत के नेतृत्व की तारीफ करते हुए ये बातें कही.
दुनिया का नेतृत्व करने में सक्षम
विश्व आर्थिक मंच के बयान में भी कहा गया है कि वो भारत के साथ करीब 40 साल का इतिहास साझा करता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जी 20 अध्यक्षता के दौरान फोरम भारत के साथ साझेदारी को आगे मजबूत बनाने को लेकर बेहद आशावान है. वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम का मानना है कि G20 अध्यक्षता के दौरान भारत दुनिया में सभी के लिए एक न्यायसंगत और समान विकास को बढ़ावा दे रहा है. क्लॉस श्वाब का ये भी मानना है कि इस वक्त दुनिया खेमों में बंटी हुई है और ऐसे समय में भारत को जी 20 की अध्यक्षता मिली है. इस लिहाज से खंडित या बंटी दुनिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व बेहद महत्वपूर्ण है. ये कहकर विश्व आर्थिक मंच ने जाहिर कर दिया कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत दुनिया का नेतृत्व करने में सबसे ज्यादा सक्षम है.
हर संकट को झेलने की ताकत
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के ब्राइट स्पॉट वाले बयान के कुछ मायने हैं. इसका मतलब है कि भारत की अर्थव्यवस्था में इतनी ताकत है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आने वाले किसी भी संकट या झंझावात से उसके विकास पर असर नहीं पड़ने वाला. असर पड़ेगा भी, तो वो अस्थायी होगा. इसका ताजा उदाहरण है कि कोरोना महामारी की मार से दुनिया की बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्था उबर नहीं पा रही है. वहीं भारत की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ चुकी है.
उज्ज्वल है भारतीय अर्थव्यवस्था का भविष्य
भारत को लेकर उम्मीदें ऐसे ही नहीं बढ़ रही हैं. 2023 में वैश्विक मंदी की आशंका बनी हुई है, इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था इस साल किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था से बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है. वर्ल्ड बैंक ने भारत के लिए 6.6% ग्रोथ रेट का अनुमान लगाया है. वहीं अमेरिका के लिए ये अनुमान महज़ 0.5% है. वर्ल्ड बैंक का मानना है कि भारत इस मामले में चीन से भी आगे निकल जाएगा. चीन में इस साल 4.3% ग्रोथ रेट रहने की संभावना है. कोरोना की मार की वजह से 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुख भले रहा था, लेकिन 2021-22 में इसने फिर रफ्तार पकड़ ली. जहां बड़े-बड़े देश आर्थिक संकट से जूझ रहे थे, वहीं 2021-22 में भारत की जीडीपी में 8.7% की वृद्धि हुई. इससे भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गया.
बड़ी होती जा रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
आज से 8 साल पहले यानी 2014 में हम 2 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थे. उस वक्त यूनाइटेड किंगडम तीन ट्रिलियन डॉलर के साथ 5वें, फ्रांस छठे, ब्राजील 7वें, इटली 8वें और रूस 9वें नंबर पर था. इन आठ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था ने इन सभी देशों को पीछे छोड़ दिया. फिलहाल हम करीब 3.5 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. जैसा कि अनुमान है, विकास की रफ्तार ऐसे ही रहने पर हम 2026 में जर्मनी को पीछे छोड़कर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे. 2026 तक भारत की अर्थव्यवस्था के 5 ट्रिलियन डॉलर के पार जाने की उम्मीद है. इतना ही नहीं, ब्रिटेन की कंसल्टेंसी सेंटर फॉर इकॉनोमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (CEBR) के मुताबिक हम आर्थिक ताकत के मामले में 2032 तक जापान को भी पीछे छोड़ने की स्थिति में आ जाएंगे और 2035 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 10 ट्रिलियन डॉलर यानी 10 लाख करोड़ डॉलर की हो जाएगी. बड़ी अर्थव्यवस्था के मामले में हमसे आगे सिर्फ अमेरिका और चीन ही होगा. अमेरिका और चीन के बाद भारत 10 लाख करोड़ डॉलर की जीडीपी वाला दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा. इस कंसल्टेंसी का मानना है कि भारत की ग्रोथ अब रुकने वाली नहीं है.
भारत के सामने चीन की चमक फीकी
इस साल दावोस में भारत के सामने चीन की चमक फीकी पड़ गई. निवेशकों ने भी भारत पर ज्यादा भरोसा जताना शुरू कर दिया है. दावोस में दुनिया की दिग्गज कंपनियों के सामने भारत ने चीन के मुकाबले खुद को निवेश के लिहाज से बेहतर विकल्प के तौर पर पेश किया. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्ट गीता गोपीनाथ ने भी दावोस में कहा कि दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था बेहतर तरीके से काम कर रही है. उन्होंने कहा कि दुनिया की कई बड़ी कंपनियां चीन के मुकाबले भारत को बेहतर निवेशक देश के तौर पर देख रही हैं.
मानव संसाधन है बड़ी ताकत
दुनिया भर के निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था में इसलिए भी ज्यादा रुचि ले रहे हैं क्योंकि भारत के पास कुशल मानव संसाधन की भरमार है. जनसंख्या के मामले में भी भारत इस साल चीन को पीछे छोड़ देगा. भारत में फिलहाल 90 करोड़ से अधिक लोगों की कामकाजी उम्र की आबादी है. अगले दशक में भारत में कामकाजी लोगों की संख्या एक अरब से ज्यादा हो जाएगी. इनमें से एक बड़ी संख्या उद्यमियों की है. अंग्रेजी बोलने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है. एक बड़ी आबादी डिजिटल रूप से साक्षर है. आने वाले वक्त में भारतीय अर्थव्यवस्था को और ताकतवर बनाने के लिहाज से ये देश के पास बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण संपत्ति (substantial asset) है. ये भी एक महत्वपूर्ण घटक है जिसकी वजह से आज हर आर्थिक संगठन या मंच भारत को चमकता सितारा बता रहा है.
नहीं थमेगी विकास की रफ्तार
भारत की अर्थव्यवस्था लचीली है. ऐसी उम्मीद भी है कि वैश्विक आर्थिक सुस्ती के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था अगले एक दशक तक लगातार सामान्य मुद्रास्फीति के साथ 6 से 8% की विकास दर से आगे बढ़ेगी. कोरोना की मार पहले से ही झेल रही वैश्विक अर्थ्वयवस्था उच्च ब्याज दर और बढ़ती महंगाई के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से मंदी के कगार पर खड़ी है. इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ता दिख रहा है. वर्ल्ड बैंक का भी मानना है कि बड़ा घरेलू बाज़ार होने की वजह से बाहरी कारकों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ने वाला है.
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम में दमदार उपस्थिति
इस मंच से हर साल की भांति इस साल भी भारत ने वैश्विक निवेशकों को भरोसा दिलाया कि भारत स्थिर नीति देने वाले मजबूत नेतृत्व के साथ लचीली अर्थव्यवस्था बना रहेगा. भारत ने 10 लाउंज बनाए थे. इनमें उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग(DPIIT) के 3 बैठक कक्ष, एचसीएल, विप्रो, इंफोसिस और टीसीएस के बिजनेस लाउंज के साथ-साथ महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना के लाउंज के जरिए भारत ने अपना दमखम दिखाया. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, मनसुख मांडविया और आर के सिंह ने अलग-अलग सत्रों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत तस्वीर पेश की. पांच दिन तक चली सालाना बैठक में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना ने भारी मात्रा में निवेश जुटाने में सफलता हासिल की है. निवेशकों ने महाराष्ट्र में 1.37 लाख करोड़ रुपये के निवेश से जुड़े समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए. वहीं तेलंगाना ने अलग-अलग क्षेत्रों में करीब 21,000 करोड़ रुपये का निवेश जुटाने में सफलता हासिल की है.
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम और भारत
इस साल वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की थीम वर्ल्ड कॉपरेशन इन ए फ्रैग्मेण्टेड वर्ल्ड यानी ‘एक खंडित दुनिया में सहयोग’ था. वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के साथ भारत का मजबूत रिश्ता रहा है. 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की सालाना बैठक में शामिल होने दावोस गए थे. दो दशक के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की सालाना बैठक में हिस्सा लिया था. उससे पहले 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा इसकी बैठक में शामिल हुए थे. 2022 में 17 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए विश्व आर्थिक मंच के डावोस एजेंडा शिखर सम्मेलन में ‘स्टेट ऑफ दी वर्ल्ड’ विषय पर विशेष सम्बोधन किया था. इसमें उन्होंने कहा था कि भारत जैसी मजबूत डेमोक्रेसी ने पूरे विश्व को एक खूबसूरत उपहार दिया है, एक bouquet of hope दिया है. उस वक्त ही पीएम मोदी ने दुनिया के सामने ये बता दिया था कि भारत संकट की घड़ी में सिर्फ खुद के लिए नहीं सोचता है, बल्कि संपूर्ण मानवता के हित में काम करने वाला देश है.
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम का सफ़र
वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम के बनने की कहानी 1971 से शुरू होती है. उस वक्त जिनेवा विश्वविद्यालय में काम कर रहे प्रोफेसर क्लॉस एम श्वाब ने इसकी नींव रखी थी. इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में है. इसकी सालाना बैठक हर साल दावोस में होती है. पहले इस फोरम का नाम European Management Forum हुआ करता था. शुरू में इसकी बैठकों में सिर्फ बिजनेस लीडर ही हिस्सा लेते थे. जब 1973 में ब्रेटन वुड्स सिस्टम के तहत डॉलर एक्सचेंज रेट से दुनिया के कई देश किनारा करने लग गए और अरब-इजरायल युद्ध छिड़ने के कारण इस मंच का ध्यान आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर गया. इसके बाद पहली बार जनवरी 1974 में दावोस में राजनेताओं को आमंत्रित किया गया. यूरोपियन मैनेजमेंट फोरम का नाम 1987 में बदलकर वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम कर दिया गया. 2015 में फोरम को औपचारिक रूप से एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में मान्यता दी गई थी. अब यह सार्वजनिक-निजी सहयोग के वैश्विक मंच के रूप में काम करता है. ये एक गैर-लाभकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो दुनिया भर के जब व्यापार, सरकार और नागरिक समाज के नेताओं को एक साथ आने के लिए मंच की सुविधा प्रदान करता है. सबसे खास बात ये है कि इस फोरम का खुद का कोई हित नहीं है. ये वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक एजेंडों को आकार देने के लिये राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र के नेताओं को साझा मंच मुहैया कराता है. इससे पब्लिक-प्राइवेट सहयोग को बढ़ावा मिलता है.
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