Governor Salary: हाल ही में केंद्र सरकार ने बड़ा फेरबदल करते हुए एक साथ 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के राज्यपालों को बदल दिया. राष्ट्रपति ने सात राज्यों के राज्यपालों को दूसरे राज्यों में नियुक्त किया है, जबकि पांच राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्तियां की गईं. वहीं, अब्दुल नजीर की नियुक्ति पर भी विवाद हो रहा है. ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर किसी राज्य में राज्यपाल की जरूरत क्यों होती है? मुख्यमंत्री के अलावा इनके पास कितनी शक्तियां होती हैं और इनकी सैलरी कितनी होती है?
राज्यपाल की जरूरत, शक्तियों और सैलरी की बात करें, उससे पहले जान लेते हैं कि किन राज्यों में किन लोगों को नियुक्त किया गया है. सरकार ने अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय, बिहार, महाराष्ट्र और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में राज्यपालों की नियुक्तियां की हैं.
किस राज्य में कौन राज्यपाल?
राज्यपाल की शक्तियां
राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करते हैं. मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद का गठन करते हैं और मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करते हैं. राज्यपाल राज्य की सभी यूनिवर्सिटीज के चांसलर होते हैं. राज्य के एडवोकेट जनरल, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल करते हैं. राज्यपाल की अनुमति के बिना फाइनेंस बिल को विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता. कोई भी बिल राज्यपाल की अनुमति के बगैर कानून नहीं बनता.
राज्यपाल चाहें तो उस बिल को रोक सकते हैं या लौटा सकते हैं या फिर राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं लेकिन राज्यपाल की ओर से अगर बिल को वापस लौटा दिया जाता है और वही बिल बिना किसी संशोधन के विधानसभा से पास हो जाता है तो फिर राज्यपाल उस बिल को रोक नहीं सकते, उन्हें मंजूरी देनी ही पड़ती है.
गिरफ्तारी या हिरासत
कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर की धारा 135 के तहत प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, मुख्यमंत्री, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों को गिरफ्तारी से छूट मिली है. ये छूट सिर्फ सिविल मामलों में है. क्रिमिनल मामलों में नहीं. इस धारा के तहत संसद या विधानसभा या विधान परिषद के किसी सदस्य को गिरफ्तार या हिरासत में लेना है तो सदन के अध्यक्ष या सभापति से मंजूरी लेना जरूरी है. धारा ये भी कहती है कि सत्र से 40 दिन पहले, उस दौरान और उसके 40 दिन बाद तक न तो किसी सदस्य को गिरफ्तार किया जा सकता है और न ही हिरासत में लिया जा सकता है.
इतना ही नहीं, संसद परिसर या विधानसभा परिसर या विधान परिषद के परिसर के अंदर से भी किसी सदस्य को गिरफ्तार या हिरासत में नहीं ले सकते क्योंकि अध्यक्ष या सभापति का आदेश चलता है. चूंकि प्रधानमंत्री संसद के और मुख्यमंत्री विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य होते हैं, इसलिए उन पर भी यही नियम लागू होता है.
जबकि, संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को छूट दी गई है. इसके तहत, राष्ट्रपति या किसी राज्यपाल को पद पर रहते हुए गिरफ्तार या हिरासत में नहीं लिया जा सकता है. कोई अदालत उनके खिलाफ कोई आदेश भी जारी नहीं कर सकती. राष्ट्रपति और राज्यपाल को सिविल और क्रिमिनल, दोनों ही मामलों में छूट मिली है. हालांकि, पद से हटने के बाद उन्हें गिरफ्तार या हिरासत में लिया जा सकता है.
राज्यपाल की सैलरी
सभी राज्यों के राज्यपाल को हर महीने 3 लाख 50 हजार रुपये की सैलरी मिलती है. जबकि, प्रधानमंत्री को हर महीने 1 लाख रुपये सैलरी मिलती है. तो वहीं, राष्ट्रपति को 5 लाख रुपये और उपराष्ट्रपति को 4 लाख रुपये सैलरी मिलती है. सैलरी के अलावा राज्यपालों को कई तरह के भत्ते भी मिलते हैं, जो हर राज्य में अलग-अलग होते हैं. उन्हें लीव अलाउंस भी मिलता है.
अगर राज्यपाल छुट्टी पर रहते हैं तो उन्हें इसके लिए भत्ता मिलता है. सरकारी आवास की देखभाल और रखरखाव के लिए भी भत्ता दिया जाता है. साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के अस्पतालों में फ्री मेडिकल केयर भी दी जाती है. इतना ही नहीं, अगर राज्यपाल को किसी काम के लिए गाड़ियों की जरूरत पड़ती है तो वो मुफ्त में किराये पर ले सकते हैं. उनके और उनके परिवार को वेकेशन के लिए ट्रैवलिंग अलाउंस भी मिलता है. इन सबके अलावा और भी कई तरह के भत्ते उन्हें मिलते हैं.
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