Maharashtra Encounter Specialist: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने माफिया राज को खत्म करने के लिए एनकाउंटर की रणनीति अपनाई है. पुलिस, गैंगस्टरों को पकड़-पकड़ कर ठोक रही है. अब से 30 साल पहले मुंबई पुलिस ने भी एनकाउंटर की ऐसी ही नीति अपनाई थी जिसके बाद मुंबई अंडरवर्ल्ड के गिरोह ठंडे पड़ गए. इस रणनीति ने नतीजे तो दिए लेकिन खाकी वर्दी वाले राक्षस भी पैदा कर दिए.
दरअसल, नब्बे के दशक में मुंबई शहर पर माफियाओं का राज चलता था. दाऊद इब्राहिम, छोटा राजन, अरुण गवली, अश्विन नाईक और अबू सलेम जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन अपनी दहशत के बूते मुंबई में अपना काला कारोबार चलाते थे. इन गिरोहों के बीच आपसी गैंगवार तो होता ही था लेकिन जबरन उगाही के लिए भी ये गोलियां चलाते थे. बिल्डर, कारोबारी, बार मालिक और फिल्मकारों को उगाही के लिए फोन किए जाते थे. जो पैसा नहीं देता था उसको गोलियों से भून दिया जाता था.
पुलिस अपराधियों को पकड़ती थी लेकिन…
एक वक्त ऐसा आया जब गैंगस्टरों के हौसले इतने बढ़ गए कि उन्होंने पुलिस कमिश्नर दफ्तर के ठीक सामने एक कपड़ा कारोबारी की गोली मारकर हत्या कर दी. गोलियों की गूंज कमिश्नर साहब के दफ्तर तक पहुंची. अदालती व्यवस्था अपराधियों पर लगाम कसने में नाकाम नजर आ रही थी. पुलिस अपराधियों को पकड़ती थी लेकिन गवाहों को डरा धमका कर और सबूत मिटा कर अपराधी छूट जाते थे और फिर खून खराबे में जुट जाते थे.
गोपीनाथ मुंडे ने दी थी पुलिस को खुली छूठ…
1995 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार आई जिसमें उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री गोपीनाथ मुंडे बने. अंडरवर्ल्ड से निपटने के लिए उन्होंने पुलिस को पूरी छूट दे दी और पुलिस अधिकारियों से कहा कि गैंगस्टरों के खात्मे के लिए उन्हें जो ठीक लगता है वो करें लेकिन मुंबई को साफ करें. इसके बाद एनकाउंटर का सिलसिला शुरू हो गया. हर दूसरे दिन पुलिस किसी ना किसी गिरोह के गैंगस्टर को तथा कथित एनकाउंटर में मार डालती थी.
गोली का जवाब गोली से देने की पुलिस की इस रणनीति ने नतीजे दिखाने शुरू किए और इस सदी के पहले दशक तक मुंबई के सभी गैंग लगभग ठंडे पड़ चुके हैं. ज्यादातर गैंगस्टर या तो मारे गए या सलाखों के पीछे हैं. अब मुंबई में 90 के दशक की तरह रोजाना न तो गैंगस्टर की ओर से शूटआउट होता है और न ही पुलिस की ओर से एनकाउंटर.
इस रणनीति ने मुंबई पुलिस में…
एनकाउंटर की इस रणनीति ने मुंबई पुलिस में एक अलग नस्ल के पुलिस वालों को पैदा किया. मीडिया ऐसे पुलिस वालों को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहकर बुलाती थी क्योंकि यही वे चंद पुलिस अधिकारी थे जिनके हाथों गैंगस्टरों को गोली मारी जाती थी. ऐसे लोगों को मीडिया ने हीरो बना कर पेश किया और ये तमाम अधिकारी राजनेताओं के भी खास बन गए. विजय सालसकर, प्रदीप शर्मा, दया नायक, सचिन वाजे और रविंद्र आंग्रे घर-घर का नाम बन गए.
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस अधिकारियों ने अपराधियों को तो खत्म किया लेकिन आगे चलकर ये खुद भी एक-एक कर के आपराधिक मामलों में फंसते चले गए. प्रदीप शर्मा को पहले अंडरवर्ल्ड से रिश्तों के आरोप में पुलिस फोर्स से बर्खास्त कर दिया गया और उसके बाद लखन भैया नाम के एक कथित गैंगस्टर के फर्जी एनकाउंटर मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि कुछ वक्त बाद शर्मा अंडरवर्ल्ड से रिश्तों और फर्जी एनकाउंटर के आरोपों से बरी भी हो गए लेकिन साल 2021 में उन्हें मनसुख हिरन नाम के एक व्यापारी की हत्या करवाने के आरोप में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया.
किसी जमाने में प्रदीप शर्मा के दाहिने हाथ माने जाने वाले इंस्पेक्टर दया नायक का भी खूब नाम हुआ करता था. साल 2006 में दया नायक भी उस वक्त विवादों में फंस गए जब उन्होंने कर्नाटक में अपनी मां के नाम पर करोड़ों रुपए की लागत से एक स्कूल बनवाया. इसके बाद आय से ज्यादा संपत्ति के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में सबूतों के अभाव में दया नायक दोषमुक्त हो गए.
सचिन वाजे नाम का एनकाउंटर स्पेशलिस्ट…
प्रदीप शर्मा की ही टीम में सचिन वाजे नाम का एनकाउंटर स्पेशलिस्ट भी था. साल 2004 में उसे ख्वाजा यूनुस नाम के एक आरोपी की हिरासत में हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद उसे निलंबित कर दिया गया. इस बीच वो शिवसेना से जुड़ गया और 2020 में उद्धव ठाकरे की सरकार ने उसका निलंबन खत्म कर के वापस पुलिस सेवा में ले लिया. अगले ही साल मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर विस्फोटकों से भरी कार खड़ी करने के आरोप में एनआईए ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अधिकारियों में रविंद्र आंग्रे का भी बड़ा नाम था. आंग्रे ने 52 कथित गैंगस्टर को मारा था लेकिन 2009 में ठाणे के एक बिल्डर से जबरन उगाही की कोशिश के आरोप में आंग्रे को गिरफ्तार कर लिया गया. बाद में आंग्रे बरी हो गए लेकिन 14 महीने उन्हें जेल में गुजारने पड़े.
ऐसे तमाम एनकाउंटर स्पेशलिस्ट अधिकारियों का आरोप है कि उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाते हुए और कानूनी जोखिम उठाते हुए अपराधियों का खात्मा किया. जब उनकी जरूरत थी तब बड़े अधिकारियों और राजनेताओं ने उनका इस्तेमाल लिया. जरूरत खत्म होने पर उन्हें रास्ते से हटा दिया गया.
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