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Ayodhya Ram Mandir Pran Pratistha Ceremony Would Start From 16 January And Actual Muhrat On 22 January 2024

Ram Mandir In Ayodhya: 22 जनवरी वो तारीख है जब अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. इसके लिए अयोध्या की सुंदरता को किस कदर निखारा गया है, किसी से छिपा नहीं है. एक-एक गलियां, एक-एक सड़कें, हर छोटे-बड़े मंदिर, कोई भी जगह अछूती नहीं है, जिसकी सुंदरता में चार चांद न लगाए गए हों. 

जरा सोचिए, जब त्रेतायुग में सच में भगवान राम 14 वर्षों के वनवास के बाद लौटकर अयोध्या आए होंगे, तब अयोध्या को किस कदर सजाया गया होगा. जब इस कदर तकनीक नहीं थी कि रंग-बिरंगी रोशनी से किसी शहर को नहलाया जा सके, तब भरत के नेतृत्व में किस कदर अयोध्यावासियों ने अपने राम का स्वागत किया होगा. 

अब उस सुंदरता की तो महज कल्पना ही की जा सकती है, लेकिन वाल्मीकि रामायण में महर्षि वाल्मीकि और रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने उस वक्त की अयोध्या का जिन शब्दों में बखान किया है, उसे सामने रखने की कोशिश की गई है. इससे समझ में आ सकेगा कि त्रेतायुग में सुंदरता की परिभाषा क्या थी.  
 
राम के वन जाने के बाद राम की चरणपादुकाओं के साथ भरत अयोध्या के पास बसे नंदीग्राम में ही रहते थे. राम जब अयोध्या लौट रहे थे तो रास्ते में वो भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुके थे. और वहीं पर उन्होंने हनुमान से कहा कि वो अयोध्या जाकर भरत को ये बताएं कि राम अयोध्या आ रहे हैं. तब हनुमान ने भरत को पूरी कहानी बताई और ये भी बताया कि भारद्वाज मुनि के आश्रम से राम अब अयोध्या आने वाले हैं. तब भरत ने शत्रुघ्न से अयोध्या को संवारने के लिए कहा. वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 130वें सर्ग में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं-

विष्टीरनेकसाहस्त्राश्चोदयामास वीर्यवान्।
समीकुरुत निम्नानि विषमाणि समानि च।।
स्थलानि च निरस्यंतां नन्दिग्रामादित: परम्।
सिंचन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा।।

अर्थात भरत के कहने पर शत्रुघ्न ने कई हजार कारीगरों को कहा कि नंदीग्राम से अयोध्या तक के बीच की सड़क को ठीक किया जाए. जहां रास्ता उबड़-खाबड़ हो वहां मिट्टी भरकर उसे बराबर किया जाए. बर्फ के समान शीतल जल से सड़क पर छिड़काव किया जाए.

महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं-

ततोअभ्यवकिरन्त्वन्ये लाजै: पुश्पैश्च सर्वश:।।
समुच्छितपताकास्तु रथ्या: पुरवोत्तमे।।
शोभयन्तु च वेश्मानि सूर्यस्योदयनं प्रति।
स्त्रग्दामभिर्मुक्तपुष्पै: सुगन्धै: पंचवर्णकै:।।

अर्थात, सड़कों पर फूल बिखेर दिए जाएं. पुरियों में उत्तम अयोध्यापुरी की सभी सड़कों पर झंडियां लगा दी जाएं. सूर्योदय से पहले ही नगर के समस्त भवन फूल-मालाओं और मोती के गुच्छों से और सुगंधित पांच रंग के पदार्थों के चूर्ण से सजा दिए जाएं.

इसी बात को गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में लिखा है. उत्तरकांड के दोहा नंबर 2 की आखिरी चौपाई में तुलसीदास लिखते हैं-

प्रभु के आने की बात जानकर अवधपुरी संपूर्ण शोभाओं की खान हो गई. तीन प्रकार की सुंदर वायु बहने लगी. सरयूजी अति निर्मल जलवाली हो गईं. अयोध्या के तमाम घरों की सुंदरता का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास उत्तकांड के दोहा नंबर 8 की चौपाई में लिखते हैं-

अर्थात सोने के कलश को अलग तरह से संवारा गया है, जिन्हें सभी अयोध्यावासियों ने अपने-अपने घरों के सामने रखा है. सभी लोगों ने मंगल के लिए बंदनवार, ध्वजा और पताकाएं लगा रखी हैं. सारी गलियां सुगंधित द्रव्यों से सिंचित हैं. चौक बनाए गए हैं. सुंदर-सुंदर मंगर साज सजाए गए हैं और खुशी से पूरे नगर में डंके बज रहे हैं.

अयोध्या की शोभा का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास दोहा नंबर 8 में लिखते हैं-

अपने राम को देख अयोध्या की स्त्रियां जहां-तहां न्योछावर कर रही हैं. बेहद आनंदित होकर आशीर्वाद दे रही हैं. बहुत सी स्त्रियां सोने के थाल में अनेक प्रकार की आरती सजाकर मंगलगान कर रही हैं. उनकी इस आरती का वर्णन खुद वेद, शेषजी और सरस्वती कर रही हैं. अयोध्या की सुंदरता और राम को अपने महल में दाखिल होने की बात को बताते हुए तुलसीदास लिखते हैं-

होहिं सगुन सुभ बिबिधि बिधि बाजहीं गगन निसान।
पुर नर नारि सनाथ करि भवन चले भगवान।।

यानी कि अनेक प्रकार के शुभ शकुन हो रहे हैं. आकाश में नगाड़े बज रहे हैं. अयोध्या के पुरुषों-स्त्रियों को कृतार्थ कर भगवान अपने महल को चले जाते हैं. राम के राज्याभिषेक पर तुलसीदास लिखते हैं-

नभ दुंदुभीं बाजहिं बिपुल गंधर्ब किंनर गावहीं।
नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं॥
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते।
गहें छत्र चामर ब्यजन धनु असिचर्म सक्ति बिराजते॥1॥

यानी कि आकाश में बहुत से नगाड़े बज रहे हैं. गन्धर्व-किन्नर गा रहे हैं. अप्सराओं का झुंड नाच रहा है. देवताओं और मुनियों को आनंद है. भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न, विभीषण, अंगद, हनुमान और सुग्रीव छत्र, चँवर, पंखा, धनुष, तलवार, ढाल और शक्ति लिए हुए विराजमान हैं.

यानि कि जब सच में राम अयोध्या लौटे थे तो वाल्मीकि रामायण के श्लोकों और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस के दोहों और चौपाइयों में अयोध्या की जिस खूबसूरती का वर्णन है, उसके आगे स्वर्ग भी फीका पड़ जाता है. अब भी जब अयोध्या में रामलला का मंदिर बन गया है और उसमें प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो कलियुग में सुंदरता की जो परिभाषा है, अयोध्या उसको साकार करने में लगी हुई है.  

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